राजस्थांरा दूहा | Rajasthana Duha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
367
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अवचन
শান শি
| लेखक--महामहोपाध्याय रायबहादुर श्रीगौरीशंकर हीराचंद ओझा, अजमेर ]
भारतवर्षके प्राचीन वाझ्ययमें काव्यका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान हे ।
गद्यकी अपेक्षा कवितामें प्राय: विशेष आकर्षण और प्रभावोत्पादनकी शक्ति
रहती है। किसी घटना-विशेषकों देखकर मानव-हृदयमें सहसा जो
विचार उत्पन्न होते हँ उनकी कविताके रूपमे बहुत सुन्दर अभिव्य॑जना
होती है | इसी विचारको छक्ष्यमें रखते हुओ अंग्रेजी-साहित्यके सुप्रसिद्ध
अरोचक मैथ्यू आर्नोल्डने कवितके सम्बन्धमे छिखा है--
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अथौत् कविता मरुष्यकी सबोङ्गसुंदर उक्ति दै, जिसमें वह सत्यको
अधिक-से-अधिक सफरतापृवेक प्रकट कर सकता है ।
प्राचीन भारतीय काव्यके इतिहासमें सहर्पषि वाल्मीकि आदि-कवि
ओर उनका ग्रथ रामायण आदि-काव्य माना जाता है। अक बार वाल्मीकिने
देखा कि किसी व्याधने कामासक्त क्रोच ( पश्चीविशेष ) मिथुनमेंसे ओक
पक्षीको अपने बाणसे आहत किया, तो तरश्चण ऋषिके कोमख हृदय पर
उसका गहरा प्रभाव पड़ा ओर उस समय उनके रोकके उद्गार अओकदम
दलोकके रूपमे प्रकट हे, जिसके सम्बन्धमे महाकवि काडिद्ासने अपने
रघुवंश महाकान्यमे हिला है-
निषाद-विद्धाण्डज-दशनोत्थः
इछोकत्वसापद्यत यसर्य शोक: ।
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