सुकवि - सरोज भाग - 2 | Sukabi - Saroj Bhag - 2

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sukabi - Saroj  Bhag - 2 by गौरीशंकर द्विवेदी - Gaurishankar Dwivedi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about गौरीशंकर द्विवेदी - Gaurishankar Dwivedi

Add Infomation AboutGaurishankar Dwivedi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
२ सुकवि-सरोज की माधुरी द्वारा दिंदी-संसार के समकज रक्ली थीं। जब तक उनके विरुद्ध मुझे कोड प्रबत्ञ प्रमाण नहीं मित्रता, तब तक मुझे अपना ही कथन ठीक मालूम होता है। पाठकों की जान- कारी के लिये अपने उस लेख को में ज्यों-का-श्यों यहाँ नद्धुत किए देता हू- “मनोरमा के नवंबर-मास के अंक मे बाबू श्रीशिवसंदन- सद्दायजी का एक लेख गोस्वामी तुलसीदासजी के संबंध में निकला है। आपका यद्ट लिखना सचमुच ठीक है कि गोस्वासी- जी के किसी विशेष जीवन-चरित्र पर सबंथा सत्यता की छाप देने में बहुत कुछ सावधानी ओर सोच-विचार की जरुरत है।?” | “सच तो यह दे कि गोस्वामी तुलसीदासजी के जीवन- चरित्र के संबंध में जितनी खींचा-तानी हो रही है, उतनी और किसी भी कवि के सबंध मे नहीं हुई है; फिर भी निश्चयात्मक रूप से अब तक कोई बात ठीक नहीं हो सकी है । धवाषा वेणीमाधवजी के “मूल-गोसाईं-चरित्र! को नागरी- प्रधारिणी पत्रिका आदि में यथेष्ट आलोचना हो रही है, भौर उसकी प्रामाणिकता भौर अप्रामाणिकतां पर भी समुचित प्रकाश डाला जा रद्दा है। अतः उस पर कछ ओर लिखकर इस लेख का कलेवर बढ़ाना अभीष्ट नहीं । श्रस्तुत लेख में तो उन नवीन श्ातव्य [बातों पर जो अब तक दिदी-संसार के सामने नदीं आई है, प्रकाश डालना है ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now