सुकवि सरोज भाग - २ | Sukavi Saroj Bhag - 2

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Sukavi Saroj Bhag - 2 by गौरीशंकर द्विवेदी - Gaurishankar Dwivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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॥1 लागत-माश्र दी रव्खा गया था, फिर माय: दो सरे मित्रों के पास सेंट में घर प्रायः २०० प्रतिय पपिवां ससा- लोचनाथ तथा नमने घादि में ली गई भ्रवश्चेप ध्रवियोर्स से कुछ की यह दृश्श हुई । यही कारण है कि झधिक घाथिक हानि हो लाने फे छारण इसके धन्य सांग प्रकाशित करने की हिम्मत छी नहीं पठती थी, छित मित्रों के निरंतर झनुरोधों के कारण विवश दो इसके प्रकाशन की व्यवस्था करनी ही पढ़ी थौर यदि सहदय महटानुसावों का थोङा-सा मी सष्टयोग भाप्त हो सका, तो सके धन्य दो भाग घौर भौ प्रयिक्र सुंदर णीघ्र ही पाठकों को मेंट करने का प्रयद्ा करूंगा । दो पर गगा-रुपदनशाट-प्रेस, लखनऊ के शष्यक्ष सिन्नवर श्रीएं० रस, प्रका ओप ुलारेलालजी नावे को धिना (1. केक त सदये दिए नषा रए जाता । उन्द्दोने दा पुश्तफ 4 को सदागन्सद्र बनाने में कोई कोर- कसर नदीं रख छोडी है) ऊद चित्र भी छापने हो ब्लाकों से छाने दाप दिए भौर जितनी सी शीघ्रता संभव थी, क इसको छाप देने में दापने की है; यदि न्य प्रेखवाकज्ते भी 'छापका 'युकरया करें, तो लेखकों की पद्लन्सी ममरें दूर हो जावे । दिंदी- सािष्य सम्मेलन तथा शल्य संस्थायो म, लेखनो चौर प्रकाशकों के संबंध को उत्तरोत्तर सद्द, विश्वस्त ध्योर मशी साव से परिपुशं चनाने के लिये प्रस्ताव किए ला रहे हैं, कितु केवल प्रस्तावों दी का रत्र युम नदरी है, क्रियाय्सक ठोस कार्य करनेवाले व्यक्ति ही श्य घद्धा घोर सर्मान के पात्र चल सकते हैं । सुर यह लिखते पं होता हैं कि श्रीमार्गचली ने उसका योग्यता-पूचंदा श्रीगणेश किया है । '्रन्य प्रेसवालों घर प्रकाशकों को भी श्रीसागंवनी का छानुकरण फरना चाहिए । इससे धर्ध-लाभ, यरान्लाम छोर दिंदो-दित-साधन घादि कार्य चड़ी दी सुगमता से दो सकते हैं ।




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