आधुनिक भाषा - विज्ञान | Adhunik Bhasha Vigyan

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Adhunik Bhasha Vigyan by पद्मनारायण आचार्य - Padmnarayan Aacharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क्र २ आधुनिक भाषा-विज्ञान से ज्ञात होकर श्राप अपनी दिशा बदल देते हैं। इसी प्रकार पट- च्रक्रित दोड़ते हुए बालक देखकर आर कोई स्कूल होगा, ठेढ़ी- मेंद्री रेखाओं से सड़क के मोड़ का, दो समानान्तर रेखाओं की काट से आगे पुल्न होने का, आप बड़ी सुगमता से बी प। जातें हैं| क्रमशः शिक्षा ओर साक्षरता के फलखरूप अब य चिह्न-पट उत्तरोत्तर अक्षुर-पट में परिवत्तित हो रहे है। इसी प्रकार आप प्रकाश तथा शारीरिक संकेतों के माध्यम से भी कुछ प्रभाव ग्रहण करते है । लाल रोशनी से आप अपनी गाड़ी रोक देत हैं, पीली से आप समझ जाते हैं कि अब जाने का उपक्रम करना चाहिए और हरी रोशनी होते ही आप बड़ी निर्भयतापूर्वक गाड़ी लेकर चल देते हैं| ओर यह क्या, आप थोड़ी दूर भी नहीं गए हैं कि पीछे से एक दूसरी गाड़ी की आवाज आप तक पहुँचती है । अप अपना हाथ बाहर निकाल कर हिला देते हैं और पीछे बाला यह समझ जाता है कि आगे वाली गाड़ी को पार करने में कोई खतरा नही है ; वह पार कर বীনা ই| मनुष्य के स्व॒र-यंत्र द्वारा उप्पादित सार्थक ध्वनि तथा दूमरे व्यक्ति के श्रु ति-पट द्वारा प्रहत, मापा की इम शाब्दिक परिभाषा के ग्रन्त्गत इन उपयुक्त प्रणालियो को यद्यपि हम नहौ रख सकते, फिर भी यदिच्रथप्रेषणही माषाका त्रमीष्ट हो, तो इनमें और बोली एवं लिपि में क्‍या कोई वस्तुगत वैभिन्य प्रतीत होता है ! ऐतिहासिक पुष्टि हमारे पास वर्त्तमान है कि मनुष्य द्वारा प्रयुक्त सक्तो, चित्रों, चिह्ों आदि की पद्धतियाँ सभ्यता के अभिचेतन्य मे प्रयुक्त किये जाने वाले ध्वनि प्रतीको से किसी भी अंश में हीनतर नही हैं। अर्थ-प्रेषण की ज्ञमता वस्तुतः बोली तथा लिपि से कोई संबध नहीं रखती है। वेचारिक उत्तर- दायित्व को वहन करने की अन्य अनेक पद्धतियाँ हैं। ऐतिहासिक विकास-क्रम को सामने रखकर यदि विचार करें, तो यह ष्ट ह्ये




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