चुने फूल | Chune Phool

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Chune Phool by पद्मनारायण आचार्य - Padmnarayan Aacharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) दुम्दरौ कदा चोरि दम छं है, खेलन चलो संग দিবি जोरी 1 सूरदास प्रभु रसिक सिरोमनि, बातनि भुरइ राधिका गोरी ॥ ११ धरनि धर क्यो राष्यौ दिन सात । अ्रति हिं कोमल भुजा तुम्हारी, चापति जसुमति मात |) ऊँची श्रति विस्तार भार बहु, यह कि कहि पदधितात । वह श्रगाध तुव तनक तनक कर, कै राख्यो तात ॥ मुख प्वुभति, दरि कंठ लगावति, देखि हसत बल भ्रात । सूरस्याम कौ कितिक ब.त यदह, जननी जोरति नात ॥ १२ सवै मिलि पूजो हरि की बहियाँ। ४' जौ नहि लेत उठाइ गोबंधन को बाँचत ब्रज महियाँ।। कोमल कर गिरि धन्यो, धोघु.पर सरद कमल को छिथ । सूरदास प्रभु तुम दरसन सो आनंद हैं सत्र कहियाँ। १३ मुरली कौ मन हरि सो मान्यो | हरि कौ मन मुरली सों मिलि गयो जैपे पय अरु पन्यो || जैसे चोर चोर सो रातै, ठठा ठठा एके जानि। ` कुटिल कुटिल मिलि चल एक है, दुहुनि वनो पदिचानि + ये वन बन नित धेनु चरावत. वह बनदी की চ্সাহি। सूर॒ गदी जोरी विधना की, जैकी तैसी ताहि ॥ १४ मेरे दुख को ओर नहीं । षट रि सीत उष्म बरषा में, ठाढ़े पाइ रही॥ कसकी नहीं नेऊुहूँ कारत, घाप राखी उरि! ' आगिनि सुलाक देत नहिं मुरकी, वेह घनावत जारि ॥




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