लोरिकी | Loriki

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Loriki by श्याम मनोहर पाण्डेय - Shyam Manohar Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लोगरिकी-अहोर जाति টা, लोरिकी मस्य खय मे अहोर जाति का लोक महाकाब्य है। इसके तोन नाम प्रचलित है | मेदिनी जोर सयदा देते परायः वयय वोत के | মানণুল पत्र में लोॉगियों जोर लॉसकायन तथा जवधा নি ননী ও 111 कट। है। बहुज कहा जा चुका के कि इस मराकाठ्य के गायक বায; মাত বাবা + | ने [নাল নয में अगोरी और चावन के पास की हक হাড়ি বত মশারি का सर हज किया > वर उनके যম মা ডলার थे । कहते का ला 1 উল ৯ कि पकः समस्त और प्रभावणानी जाति ने अपने इस जातीय गोरब गाया को পিলার বানা মত चण्डाद्‌) जिसकी वजह से यह कालय अमो कक खाक শালা प तत र; किला अब সানা शिक्षा प्रचार ओर प्रसार क काम्य শু মাহী होकरा को और पवून हो रहो तथा मनोरंजन कै घाप साधन विकसित हो गये है, अल; লী महाकाव्य के अभ्यास णेसे अ्रम-साध्य कार्य নয হুক विभुख हो रह है । नई पोढ़ी के पास अब लेती गभव हैं और ने उसके घास कोई प्रणा है कि जिसके कारणा बड़े इसे बह महाकाजय के হানা, खत: पूजा बाढ़ इसे काड्य मे उतनी दिलचस्पी नहीं ले रहो है । नई शिक्षा से पहच-वादत का अच्यास अधिक बड़ा है, अत: मृति में किसी वरतु को सुरक्षिग रखने को আবু लि भीकम हुई है। यह मौ नाक साहित्य से लोक की हुए हुटा रह! है अतः आशका हैं कि के ही व्धों में लॉरिको जनै गायन वी परम्पर कषस हतर न्ट ही जिन । लॉगसिक के खॉलाओं में भों अपिकांश अहीर लोग हो होते हैं। उत्तर मारत में इन्हें मादव था चोधरों कहा जाता है । ६ जाति का सम्बन्ध प्राबान आभारा গস क [जक प वन्तं भन्ने म प्रभव च | कझामीर जाति के इतिहाश पर खोजन्वाय हुआ ই ঘর সঙাণ लक्षक का उरुश्य केवलं सोके महाकाव्य वै, दामे मन्दम को स्यप्ट करना है । जह तक भूमेः ज्ञात द प कचा संखिलों, मगहीं, भोजपुरी, अबधी, छलीमगढ़ी आदि हीतों में ह| प्रबलित है । श्र तथा अह्य (दन्डो मेत तै भूमे दमक भदत कीं मृचता तहीं मिली । उत्तर प्रदेश में जहोर जागो क कन वतते दल कवा को सूरक्षित रखा हैं उसमें दिदोर और खाल विशेष रूप से उच्च अनीय है | सबू 1दह हे को जन गणना के अनुसार लाटिकों के অনার টা में में हीं दो वां अधिक धक्यां मे ये । हल अध्यन वैः लि! देखिए, जि ६३६ ४ # 110 114 [ 15117158578) ৮ 17711) 1)1১17551 11517 11500155701 0917815) চন105) 11065177189




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