काया कल्पद्रुम भाग 2 | Kavya Kalpadrum - 2

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Kavya Kalpadrum - 2 by कन्हैयालाल पोद्दार - Kanhaiyalal Poddar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(पए ) लोग कहते हैं भ्रन्धकार हट जाने से सुरेन्द्र की रानी4६ ( प्राची दिशा) प्रकाशित हो रही है । हमारे विचार में तो यह कुछ और ही है। प्राची दिशा का इस समय प्रकाशित दिझाई देना तो एक बहाता मात्र है श्रसल बात यह है कि वरुण की पती ( परिचम दिशा ) के तिकट जाने पर चन्द्रमा का किरण-समूह रूपी वस्त्र का प्रत्येक भाग क्रमशः हट कर दृप्त समय सर्वथा दूर हो गया है ¡ धतएव चन्द्रमा की इस नप्त अचस्था के हास्य-जनक धश्य को देखकर वह (प्राची दिशा) हँस रही है, क्योंकि अन्य रमझी में आसक्त किसी सन्सान्‍्य पुरुष की ऐसी हास्योत्पादक दशा देखकर कामिनी जनों को हँसी आ जाना स्वाभाविक है। इस उक्ति-वैचित्र्य से प्रातः:काश्लीन क्षीण-कान्ति चस्धमा में नगना- वस्था की, शोर प्राची दिशा में प्रकाशित हो जाने के গ্যাস से स्मित दस्य की, साभावना की जाने के कारण सापनन्‍्हव उत्मेक्षा है । ( १ ) और देखिये-- : “स्वमुकुलमयनत्रेरन्धैभविष्णु तया जनं किमु कुमुदिनीं दुव्योचष्ट रपेरनवेक्तिकाम्‌ । लिखितपरिता राज्ञो दाराः कचिप्रतिभाु यं शएतश्रृएतासूयपश्या न सा ` किलत भाविनी ।” --मैषधीयचरित ९ ६।६१ कुमुुदिनी प्रभात समय में अपने कलिकामयी भेन्नों को बन्द करके जान बूभक? अन्धी हो जाती है । पर लोग कहते हैं कि कुम्ुदिनी बढ़ी कु “-०-२०५-++-५ “कल শিশাপশি के पूर्व दिशा का पति इन्द्र है अतः यहाँ पूर्व दिशा को इन्द्र की . रानी कहपंना की गई है | ' पश्चित्त दिशा का पति चरुण है, अ6: पश्चिम दिशा को यहाँ वरुण की रात्ी कपना की गई है।.




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