कालिदास | Kaalidasa
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26 MB
कुल पष्ठ :
325
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about वासुदेव विष्णु मिराशी - Vasudev Vishnu Mirashi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उपयोग करने छगे | इस तरह विक्रमादित्यका नाम धीरे-धीरे प्रचलित संवत्सरकेः
साथ जुड़ गया। दूसरे विद्वानोंके मतमें यह संवत् धाल्य देशमें बहुत वर्षों तक
प्रचलित रहा और उस प्रान्तमें चौथी शताव्दीमें प्रसिद्ध पराक्रमी, दानशझर
महाराज द्वितीय चन्द्रगुप्तने दिक्रमादित्यकी पदवी धारण कर राज्य किया। आगे.
चल्कर कई शताब्दी बाद जब इस संवत्का आरम्भ किसने किस तरहसे किया,.
इसका छोगोंको ध्यान नहीं रहा, तब ( चन्धरगुत्त ) 4िक्रमादित्यके नामसे उसका
सम्बन्व जोड़ दिया गया होगा} उपयुक्त दोनों मतोमेसे किसीको मी स्वीकार करें
तो भी विक्रमादित्यने यह संवत् जारी किया, ऐसी धारणा ईसवी नवम शताब्दी.
तक नहीं थी, यह बात स्पष्ट है | संवत् २८२, २८४, २९०, ३३०, ४२८, ४६१,
४८१, ४९३, ५२९, ५८९ के शिल्ालेखोंमं इस संवत्का सर्वे प्रथम उछेख पाया
जाता है। इनमें इस संबतका नाम “ कृत ? दिया है या “ माल्वानां गणस्थित्या, ?
८ श्रीमाद्वगणाम्नाते, ` ‹ माख्वगणस्थितिवरात् ` ेसी शब्दयोजना करके उसका
उल्लेख किया है, इससे इस संदतका प्रचार माल्वगणसे होता होगा ऐसा अनुमान
होता है । पाणिनिकी अशध्यायी ( अ० ५, पा० ३; सू० ११४) से पता
चलता है कि प्राचीन काल्में माछ्व छोगोंका एक ऐसा सेघ था जो हथियार
बोध कर युद्धदवारा अपनी आजीविका करता था। ये छोग वेतन लेकर किली भी
पक्षकी ओरसे ख्डते ये | सिकन्दरको ये लड़ाकू योद्धा पंजाबमं मिले थे। बाद
ये पंजाब छोड़ कर धीरे-धीरे दक्षिगकी ओर बढ़ते ग्ये ओर आजके माल्या
प्रान्तमे उत्तरकी ओर उन्होने एक गण अथात् प्रजासत्तात्क सज्य स्थापित किया
ओर अपने नामसे सिक्का भी चछाया। ऐसे सेकड़ों सिक्के राजस्थानके * नगर ১
नामक ग्राममे पये गये हँ । उनमेसे कई सिक्छोपर “ साल्यानां जय; ” अथवा
८ माख्यगणस्म जयः ` देसे राब्द पाये जाते दं । इससे सुप्रसिद्ध इतिह स-वेत्ता
कारी प्रसाद जायसवाल्ने यह अनुमान निकास है किं उन्होने तक्काटीन किसी
प्रबल शत्रु पर ( सम्भवतः शकों पर ) विजय पाई होगी तथा अपने गणराज्यकी
स्थापना करके किसी प्रबल शज्जुपर प्राप्त ब्रिजयकी यादगार यह संवत् चस
दिया ओर स्वयं मालवेमें आकर रहने छंगे। होते होते लोग इस संदत्का
.- व्यंवहार कने छगे | वस्तुतः यह संवत् माल्यगणका ही है, यह बात जब तक
लोगोंके ध्यानमें रही तब तक, अर्थात् ईसाकी छठी शताब्दीतक मालवोंका नाम
इस संवतके साथ जुड़ा रहा ।
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