पद्य पुष्पांजलि | Padya pushpanjali

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Padya pushpanjali by गोविन्दराम शर्मा -Govindram Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(११ ) आश्रित कवियों ने उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए वीरगाथां कौ स्वना की | इनमे वीररस की प्रधानता दै, शगार का वर्णन कहीं कहीं বীজ से हुआ है। इस काल की वीरगायाओं में सब से प्राचीन काव्य दल्पति- विजय का 'खुमान रासो' है। इसमें सम्भवतः चित्तौड़ के दूसरे खुम्माण के युद्धों का वर्णन है। चन्दवरदाई का दध्बीराज रासो' तत्कालीन वीरकाब्यों में सत्र से अधिक महत्वपूर्ण है। चन्दत्ररदाई प्रध्वीराज के राजकवि थे। उन्हें हिन्दी का, आदिकवि माना जाता है। उनका धृध्वीराज रासो” एक वृहत्‌ काव्य दै, इसमें ६९ समय ( सगं या अध्याय ) हैं। इसमे पृथ्वीराज के जीवन से सम्बन्धित घटनाओं ओर उनके युधो का वर्णन ओजस्विनी भाषा में किया गया है, इस युग की अन्य रचनाओं में नरपति नाल्‍्ह कवि का 'वीसलदेव रासो” विशेष उल्लेखनीय है। उस समय की सभी रचत्ाओं में प्राचीन काव्यभाषा का प्रयोग हुआ है, किसे पिंगल कहा जाता है। वीरगाथाकाल के सम्पूर्ण साहित्य का निर्माण राजस्थान में हुआ, इसलिये उसकी भाषा पर राजस्थान की व्यावहारिक भाषा “डिंगल' का पर्याप्त प्रभाव पड़ा है | वीररस का परिपराक इन काब्यों में भच्छा हुआ है। जत्र मुसलमानों से बरावर युद्ध करने पर भी राजपूतों को सफलता न मिली और देश में मुसलमानों का राज्य स्थापित हो गया तब हिन्दू- जाति निराशा के गहरे समुद्र में डूब कर भगवान्‌ को याद करने लगी | राम और कृष्ण के भक्त-कवि अपनी कविताओं के द्वारा अक्तिकाल.. जनता के दुखी हृदय को शान्ति पहुँचाने लगे | एक ओर निगुंण-पन्‍्थी सन्त कवियों ने संसार की निस्सारता बता




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