हिन्दी शब्द सागर | Hindi Shabd Sagar

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Hindi Shabd Sagar by राजेंद्र नारायण शर्मा -Rajendra Narayan Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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झघक दढ़। ४५ संधिरा । भघकारं। ६ . दे चालकों का एक रोग ) कवियों के बॉघि हुए पथ के विरुद्ध झंधबाई#--सशां ख्री० [स० श्रधवायु] चलनें का काव्य-संबधी दोष । आधी । तूफान | घ्ंघक--एश्ो पु० [ स० ] १ नेत्रहीन झघराश-वि० दे० “द्रघाश । मनुष्प | हृष्टिरहित व्यक्ति । मघा | २. अँघरी--पंशा ख्रो० [ हिं० शघराकई कश्यप और दिति का पुत्र एक देत्य 1 झंघधकार--सज्ञा पु० [स० ] मेधिरा । झंधकाल -सज्ञा पु० दे० “अघकार” | अ्ंघकूप-सभा पु० [सि०] १ अधा दूँगा | सूबा कूँआ । वह कूँमा जिसका जल सूख गय। हो और जो घास पात से ढका हो । २. एक नरक का नाम | ३ छपरा | ः अंघखोपड़ी--पशा ख्री [ स० ' अघन- दि० खोपड़ी | जितके मस्तिष्क में बुद्धि नहीं | मूख | भमोदू । नासमझ । झअंघड़--सश्ञा पु० [ स6 अबा ] गद लिए हुए झेंकि की ' वायु । मॉधो 4 तूफान । '.. ' ः झंघतमस--पंज्ञा पु० [स० | महा अधकार। गहरा मेघिरा ।'गाढा मेंघिरा । ब्ंघता--सशञा खत्री [स०] अपन | दृष्टिदीनता ।' भी झ्ंघतामिस्त्र -पज्ञा पु० [से ] १ घोर मवकारयुक्त नरक । बड़ा मैंविरा नरक । २१ बडे नरको' सें दूपरा । २ साख्य में इच्छा के विवात या विपय्य 2 केपॉच मेदो में से एफ । जीने की इच्छा रहते भी मरने का भय ) ३ पाँच कलेशों में से एक । स्त्यु का मय । (योग ) झंघत्व--संज्ञा पु० दे० “मेंघता” । ंघघु'घक्-सरा ख्री ०दे०“मघाघुध” । झंघपरंपरा--पँशा ख्री [स०] बिना समझे बूझे पुरानी चाल का अनुकरणु । एक को कोई काम करते देख कर दूसरे का बिना किसी विचार के उसे करना | मेडियार्धेवान । अंधपूतना भ्रदू--प्ज्ञा पु० ['स० प्रत्य० |] १ शरघी । श्रेघी स्त्री । पहिए की पुट्ठियो. अर्थात्‌ गोलाई को पूरा करेंनेवालो धनुषाकार- लकड़ियों की चूल | अंघधविश्वास--पएज्ञा पु० [स०] विना' विचार किए किंपी बात का निश्चय ,। विवेकसून्य धारणा । थ इंघस--मंज्ञा पु० [ देश० ] मात | ्ंघसन्य--पज्ञा पु० [ स० | 'झणि- चित सेना । ! घ्यंघा--सशा पुं० [ स० शघ | [ ख्री० श्रधी | बिना आँख का जीव । वह जिसको कुछ सूझता न हो । दृष्टिरहित जीव। ' वि० १ बिना आाँख का । हृष्टिरहित । जिसे देख न पड़े । २ विचीररहित । अविवेकी । भले बुरे का विचार न रखरैव।ला | मुद्दा०--झ्रघा बनना-जान-बूझकर किसो बत पर ध्यान न देना ।--श्रघे की लकड़ी या “लाठी-१. एकमात्र आधार | सहारी । गमासरां । २ एक लड़का जो कई छंड़कों में बचा हो । इकलोंता लड़का । श्रघा दीया-्वह दीपक जो घुँधला या भंद जलता हो । श्ंघा मैंसानढइकों का. एक खेल । ३ जिसमें कुछ दिखाई न दे । में घेरा। यो०--श्रघा बीशा या' आईना-घुँधल। थशीदषा । वह दर्पण जिसमें चेहरा साफ़ न दिखाई देता-दो । श्रघा कुर्मॉन१ सूखा कु भॉ । वदद कु भॉ जिसमें पानी नह्दों और जिसके। मुँद घास पात से ढका हो । २. लड़को का 'एक खेछ | ब्यंघाघुघ-सच्ञा ख्री० [हिं० धान का डर * करना |” घ्घिरां घुरध] १ बड़ा मेंघेरा । घोर शधकार । २ अधेर । अविचार । अन्याय । गड- वड़ | घींगाधींगी । वि० १ बिना सच विचार की। विचाररहित । २ अधिकर्ती से | बहुतायत से |»... '. “ _ झंघाघु घी--सशा.. ख्री० ''देए “मधाधुघो” |... ब्यंधार+#--सशा पु० दे० “मेंघेरा” | सज्ञा पु० [सं० आधार] रंस्सी का जाल जिसमें घास भसा आदि भरकर वैंठ पर छादते हैं। _ की ंघाइली-सशा ख्री ० दे ० सौर पुष्पी झं घियारा--सशा पु० विं० दे० '“पचिरा | ं हे रे धघियाराध्यू--सश्ञा पुं० वि० दे० “अंधिरा” | ”'. रे घियोरी--सश, ख्री० [हिं० मेंघिरी!] १. उपद्रवी घाड़ो, शिकारी पश्चियो जोर चीर्तों की भाँख पर वॉधी जाने” वाली पट्टीं। २. अघकारप मैंघिरा । रू घियाली -सशञात्री ० दे मै घियांरी ंघेर-सश्ा पु० [ सं» अघकारु १ अन्याय । अत्याचार । जुर्मे। २ उपट्रव । गड़बड़ | 'कुमवव।* अधा- घुछ | घींगाघींगी 1 व्यंघेरखी[ता--सश्ञा पुर [हिं० मघेरत खाता] १ हिसाब किताब भर व्यवहार में 'गड़बढ़ी ! व्यर्तिक्रम । २. अन्यथो- चार । [ भारव४ श्रघापन ] अन्याय । कुप्बध । भर्विचार |. १ झ्ंघेरना#--क्रि-'स० [ दिं० अँघेर ] अधघकारमय_ करना । तमाच्छादित ् म्प अधेरा--तरा' पुंद [ स० “मंघकॉर, प्रा० भघयार 3] [ ख्ी० मघेरी | १ अधकार । तम । प्रकाश का अभाव | उजाले का उलया। २ बुघलापने । पु घग यो ०--गेंघेरा गुर्पऐसा मेँ बिरा' जिसमें कुछदिखाई न दे । घोर अवकार।




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