हिन्दी शब्द सागर | Hindi Shabd Sagar

लेखक  :  
                  Book Language 
हिंदी | Hindi 
                  पुस्तक का साइज :  
91.04 MB
                  कुल पष्ठ :  
1359
                  श्रेणी :  
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No Information available about राजेंद्र नारायण शर्मा -Rajendra Narayan Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)झघक
दढ़। ४५ संधिरा । भघकारं। ६ .
दे
चालकों का एक रोग )
कवियों के बॉघि हुए पथ के विरुद्ध झंधबाई#--सशां ख्री० [स० श्रधवायु]
चलनें का काव्य-संबधी दोष ।
आधी । तूफान |
घ्ंघक--एश्ो पु० [ स० ] १ नेत्रहीन झघराश-वि० दे० “द्रघाश ।
मनुष्प | हृष्टिरहित व्यक्ति । मघा | २. अँघरी--पंशा ख्रो० [ हिं० शघराकई
कश्यप और दिति का पुत्र एक देत्य 1
झंघधकार--सज्ञा पु० [स० ] मेधिरा ।
झंधकाल -सज्ञा पु० दे० “अघकार” |
अ्ंघकूप-सभा पु० [सि०] १ अधा
दूँगा | सूबा कूँआ । वह कूँमा जिसका
जल सूख गय। हो और जो घास पात
से ढका हो । २. एक नरक का नाम |
३ छपरा | ः
अंघखोपड़ी--पशा ख्री [ स० ' अघन-
दि० खोपड़ी | जितके मस्तिष्क में बुद्धि
नहीं | मूख | भमोदू । नासमझ ।
झअंघड़--सश्ञा पु० [ स6 अबा ] गद
लिए हुए झेंकि की ' वायु । मॉधो 4
तूफान ।  '.. ' ः
झंघतमस--पंज्ञा पु० [स० | महा
अधकार। गहरा मेघिरा ।'गाढा मेंघिरा ।
ब्ंघता--सशञा खत्री  [स०] अपन |
दृष्टिदीनता ।' भी
झ्ंघतामिस्त्र -पज्ञा पु० [से ] १
घोर मवकारयुक्त नरक । बड़ा मैंविरा
नरक । २१ बडे नरको' सें दूपरा । २
साख्य में इच्छा के विवात या विपय्य 2
केपॉच मेदो में से एफ । जीने की
इच्छा रहते भी मरने का भय ) ३
पाँच कलेशों में से एक । स्त्यु का मय ।
(योग )
झंघत्व--संज्ञा पु० दे० “मेंघता” ।
ंघघु'घक्-सरा ख्री ०दे०“मघाघुध” ।
झंघपरंपरा--पँशा ख्री  [स०] बिना
समझे बूझे पुरानी चाल का अनुकरणु ।
एक को कोई काम करते देख कर दूसरे
का बिना किसी विचार के उसे करना |
मेडियार्धेवान ।
अंधपूतना भ्रदू--प्ज्ञा पु० ['स०
प्रत्य० |] १ शरघी । श्रेघी स्त्री ।
पहिए की पुट्ठियो. अर्थात् गोलाई को
पूरा करेंनेवालो धनुषाकार- लकड़ियों
की चूल |
अंघधविश्वास--पएज्ञा पु० [स०] विना'
विचार किए किंपी बात का निश्चय ,।
विवेकसून्य धारणा । थ
इंघस--मंज्ञा पु० [ देश० ] मात |
्ंघसन्य--पज्ञा पु० [ स० | 'झणि-
चित सेना । !
घ्यंघा--सशा पुं० [ स० शघ | [ ख्री०
श्रधी | बिना आँख का जीव । वह
जिसको कुछ सूझता न हो । दृष्टिरहित
जीव।  '
वि० १ बिना आाँख का । हृष्टिरहित ।
जिसे देख न पड़े । २ विचीररहित ।
अविवेकी । भले बुरे का विचार न
रखरैव।ला |
मुद्दा०--झ्रघा बनना-जान-बूझकर
किसो बत पर ध्यान न देना ।--श्रघे
की लकड़ी या “लाठी-१. एकमात्र
आधार | सहारी । गमासरां । २ एक
लड़का जो कई छंड़कों में बचा हो ।
इकलोंता लड़का । श्रघा दीया-्वह
दीपक जो घुँधला या भंद जलता हो ।
श्ंघा मैंसानढइकों का. एक खेल ।
३ जिसमें कुछ दिखाई न दे । में घेरा।
यो०--श्रघा बीशा या' आईना-घुँधल।
थशीदषा । वह दर्पण जिसमें चेहरा साफ़
न दिखाई देता-दो । श्रघा कुर्मॉन१
सूखा कु भॉ । वदद कु भॉ जिसमें पानी
नह्दों और जिसके। मुँद घास पात से
ढका हो । २. लड़को का 'एक खेछ |
ब्यंघाघुघ-सच्ञा ख्री० [हिं० धान
का डर
* करना |”
घ्घिरां
घुरध] १ बड़ा मेंघेरा । घोर शधकार ।
२ अधेर । अविचार । अन्याय । गड-
वड़ | घींगाधींगी । वि० १ बिना सच
विचार की। विचाररहित । २ अधिकर्ती
से | बहुतायत से |»... '. “
_ झंघाघु घी--सशा.. ख्री० ''देए
“मधाधुघो” |...
ब्यंधार+#--सशा पु० दे० “मेंघेरा” |
सज्ञा पु० [सं० आधार] रंस्सी का जाल
जिसमें घास भसा आदि भरकर वैंठ
पर छादते हैं। _ की
ंघाइली-सशा ख्री ० दे ०  सौर पुष्पी
झं घियारा--सशा पु०  विं० दे०
'“पचिरा | ं हे
रे धघियाराध्यू--सश्ञा पुं० वि० दे०
“अंधिरा” | ”'.
रे घियोरी--सश, ख्री० [हिं० मेंघिरी!]
१. उपद्रवी घाड़ो, शिकारी पश्चियो
जोर चीर्तों की भाँख पर वॉधी जाने”
वाली पट्टीं। २. अघकारप मैंघिरा ।
रू घियाली -सशञात्री ० दे मै घियांरी
ंघेर-सश्ा पु० [ सं» अघकारु १
अन्याय । अत्याचार । जुर्मे। २
उपट्रव । गड़बड़ | 'कुमवव।* अधा-
घुछ | घींगाघींगी 1
व्यंघेरखी[ता--सश्ञा पुर [हिं० मघेरत
खाता] १ हिसाब किताब भर व्यवहार
में 'गड़बढ़ी ! व्यर्तिक्रम । २. अन्यथो-
चार । [ भारव४ श्रघापन ] अन्याय ।
कुप्बध । भर्विचार |.  १
झ्ंघेरना#--क्रि-'स० [ दिं० अँघेर ]
अधघकारमय_ करना । तमाच्छादित
् म्प
अधेरा--तरा' पुंद [ स० “मंघकॉर,
प्रा० भघयार 3] [ ख्ी० मघेरी | १
अधकार । तम । प्रकाश का अभाव |
उजाले का उलया। २ बुघलापने । पु घग
यो ०--गेंघेरा गुर्पऐसा मेँ बिरा' जिसमें
कुछदिखाई न दे । घोर अवकार।
					
					
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