शांतिमार्ग | Shantimarg
श्रेणी : स्वसहायता पुस्तक / Self-help book
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
46
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)३-लुभाव या छालच ।
न छ कांक्षा भनुष्य को स्वगे मं अवश्य ठे जा सकतीं
है, परन्तु वहां रहने के लिए भनुष्य को अपने
नो मन को स्वेथा स्वर्गीय पदाथों की ओरं छगा
छ देना चाहिये; कारण कि लंछिच भनुष्य को
৪ अपनी ओर खींचता है, पविज्ता से अपवि-
अता की ओर लेजाता दै,आकांक्षा से वासना की ओर मन को
आकर्षित करता है। जब तक ज्ञान में विशुद्धि.ओर विचारों में
पवित्नता नहीं हो जाती, आकांक्षा का स्थिर रहना कठिन है।'
आकांक्षा की प्रारम्मिक अवस्था में छोस प्रवछ होता है और
হান্ত समझा जाता है; परन्तु स्मरण रहे इसी अपेक्षा यद शश्च
है कि जिसको थह लुभाता है। परन्तु इस से मनुष्य फी
निर्वैता ओौर अपविच्षता का पता लगता है, इस अपेक्षा इसे
मेलुष्य का मित्र ओर आत्मिक उन्नति के लिए आवश्यक
समझना चाहिए बुराई को दूर करने ओर भटा को ग्रहण
करने के उद्योग मे यद साथ रहता है । किसी बुराई को सधेथा
दूर करने के लिये यह आवद्यक है कि वह बुराई साफ ज्ञा-
हिर हो जाए ओर यह काम अर्थात् बुराई को ज्ञाहिर कर देना
छुमाव या छालच का है|
लोम उस वासना को भड़काता है जिसको मलुष्य ने
अपने घश्च में नदीं किया है और जव तक वद उसे वश में,
नहीं कर लेगा, तव तक वरावर छोम मनुष्य को द्वाता रहेगा
(१३)
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