राजर्षि टंडन | Rajarshi Tandan

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रानी टंडन - Rani Tandan

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संतप्रसाद टंडन - Santprasad Tandan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परिवार का परिचय दस देश मे समय-समय पर दूसरे देशों से भार्य जातिया आयी मौर उन्होने यही अपना निवास स्थान वनाया । इतिहासन्नों का कहना है कि खत्री जाति ग्रीस देश से आकर पजाव में वसे आर्यों की एक शाखा है। सिकदर के आक्रमण के वाद समय-समय पर ग्रीस से आये आये লীম জান तथा अफगानिस्तान में धीरे- धीरे वसने लगे थे । इन्ही को खत्रियों का मुल वशज माना जाता है। पजाव प्रदेश मुख्य रूप से खत्रियो का गढ रहा है और यही से खत्री समाज भारत के दूसरे प्रदेशो मे धीरे-धीरे फला है। खत्रियों की अनेक उपजातियां हैं। हमारी वशगत उपजाति टडनदहै। खत्री समुदाय अपने को सूर्यवशी क्षत्रियो का वशज मानता है। बाबूजी ने हम लोगो को वतलाया था कि सस्क्ृत, प्राकृत और हिंदी के प्रसिद्ध विद्वान प० गोविंद नारायण मिश्र के अनुसार टडन शब्द 'मातंण्ड' शब्द का अपश्रश है। मार्त॑ण्ड सूर्य का पर्यायवाची है और इससे भी टण्डन खत्रियों के सुयंवशी होने के विश्वास की पुष्टि होती है । हमारे पूवं ज कहा के मूलनिवासी थे ओर उनका क्या इतिहास है इसकी पुरी जानकारी हमे नही दहै। कितु ऐसा अनुमान है कि वे किसी समय पजाव से ही आकर इस प्रदेश में बसे होगे। इत्तना हमे अवश्य ज्ञात है कि पाच-छ पीढी पुर्व हमारे पूर्वज इलाहावाद जिले के आलमचन्द गाव में रहते थे। यह स्थान इलाहाबाद नगर से लगभग ४५० किलोमीटर दूर शुजातपुर रेलवे स्टेशन के पास है। वाबूजी के प्रपितामह चन्नीलालजी* ये और चुस्तनीलालजी के पिता सिद्धगोपालजी थे । इन दोनो के सबंध की विस्तृत जानकारी तो हम लोगो को * वशवृक्ष परिशिष्ट १ में दिया गया हू ।




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