कल्पलता | Kalplata
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
204
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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हजारीप्रसाद द्विवेदी (19 अगस्त 1907 - 19 मई 1979) हिन्दी निबन्धकार, आलोचक और उपन्यासकार थे। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म श्रावण शुक्ल एकादशी संवत् 1964 तदनुसार 19 अगस्त 1907 ई० को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के 'आरत दुबे का छपरा', ओझवलिया नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री अनमोल द्विवेदी और माता का नाम श्रीमती ज्योतिष्मती था। इनका परिवार ज्योतिष विद्या के लिए प्रसिद्ध था। इनके पिता पं॰ अनमोल द्विवेदी संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। द्विवेदी जी के बचपन का नाम वैद्यनाथ द्विवेदी था।
द्विवेदी जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही हुई। उन्होंने 1920 में वसरियापुर के मिडिल स्कूल स
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आम फिर बोर ५।ये 1 ११
५९ सोचता हूँ छ५ देनी হি | चुतं दोगा सोम कहंगे, कवितार्भ
कोई स॥९ नहीं है | कोन बड़ा कवि हूँ जो अकंवि कहानेकी वदनाभीसे
डरखूँ, | वह कविता आम्र-कोरकोको अदूमुत विहुरकारिणी शक्तिका परि-
(এপ होकर मेरे पास पड़ी हुई है |
कर लते सितसन्तकों नमक उत्सवकी चर्चा आती है| सरस्वती-
कण्ठाभरणभे लिखा है कि सुवसनन््तक बसनन््तावतारके दिनको कहते हैं।
वसनन््तावत1९ अर्थात् जि दिन वन्यं एथ्वीपर अवतरित होता है|
भरा आवदुभान है, वसन्तपन्यथभी ही वह वसन्तावतार को तिथि है।
मात्यकूफ ओर हरिभक्तिविव्वस आदि ग्रन्थोमे श्सी दिनकों बसन्तका
प्राइुर्मीन-विविस माना भया है। इसी दिन मदन पेवताकी पहली
पूज। विहित है| यह भी अच्छा पभाश। है। जन्म हो बसन्तका और
डत्सव मदन देवताका | 5७ 8क नहीं मिलता | भेर। सन पुराने जभानेफे
उत्धकों प्रथण देखना चाहता है पर हाथ देखना कया सम्भव है (
सरस्नपी-कण्ठ।भरुणम महाराज भोजदेवने रुतचन्तककों एक हृस्को-सी
शकों दी है | इस दिन उस এখন रुटनाएँ, कण्ठमे कुचलूबकों माला
ओर कानमें डुर्दम आमभ्र-मञ्लरियाँ धारण करके भषोको অথবা कर्
देती थी
छ्ण (५ घूर4२प्थणि, म अत {= নুতন र्णे |
कण्णकथ चुअभंजरि, घतत तुप मंडिओशो भाभो॥
पर यह अपेक्षाकृत परवर्ती समाचार है | इसके पह७ १५ होता था १
नेथा वसन्तक जन्मदिनकों सदनका जन्मोत्सव सनाथ। नाता था १ पम
सको पोथियोम च्ल है कि वलन्तपन्चथीके হিল सदन देवताकी
पजा कश्नेसे स्वय श्रीकृष्णचन्द्रजी प्रसन होते हैं| बह ओर मजेदार बात
निकली | तान्विक आनचारैसे विष्िणु-्मजन करनेवाले बताते हैं कि 'काम-
४॥यनी ही श्रीकृष्ण-भायन्री है। तो कामदेव और श्रीकृष्ण अभिन्न सता
है ! (शणोमे लिखा है कि काम देवता श्रीकृष्णके घर पुन-रूपमें उत्पन्न
हुए ये | वह कथा भी कुछ अपने उसको अनोखी ही है। कामदेव
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