शांति संदेश | Shanti Sandesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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- १५ ~ को ध््‌<। देन। और पन मी जन रीता अग्रीकार कर नेना | इससे मात्म सात सम्पदन कोच पुर्भ एक भदापुर्प के रूप में पूने नामो, भहु कुष्ट मेरा श्राशीर्षाद हैँ ভুং্ণ ভী महात्माणी श्रदृश्व हो वे । इसके बाद कीलोजी ने तीन उपबतत को वारणो বিএ 1 कृ मास वाद उन्होच अपने सूत्र चलनी को एक यत्ति कगे १६२। दि५। जो वेलमी यत्तिके तामसे मञ।९यनिमे সখ हुए 1 इसफे बाद कोलोजी को मणिविजवरजी चाभक एक जैचन्ताथु भिले । उचके पास उन्होंने सबत्‌ १८७३ को माह सदी ५ के ছিণ থীতী। 46 नंगे । तभी से उनका चामे मुति भहाराज शल्रीवर्मनिजयवणी रखा भव । ल के घार्ट में कछ समव घ्यान में व्यतीत करते के १६ श्री धर्मविजयणी महार्तण श्री को स्वभार्नत- सहज ही आापमशाव की आप्ति हुई 1 आप इतने बडे शक्तिशाली समर्य पुरुष थे कि एक सव।न १९ विराजते हुए भी आप उच्ती समय दूर-दूर देख मे श्रनेक स्थानो ५९ श्रवते भव को दर्शन देते थे। एक समय श्राप रामसीण याँच से विहार कर श्रागें १७1९ रेहू थे। उस सेमय आपके सर बहुत से लोग थे । ज७ का भहीता था। ২৮1 একর ৭৩ रही थी। साथ के लोगो को प्यार्स सत्ताने लभी । आस-पास में नी मिलने का कोई उपाय ने था। घसलिय बहुत से लोग घ१र। गये । अनन्‍्त-दवाल श्रीभुरुदेव भगवान्‌ के पास अपनी तपंथी में थोडा स। जल था। आपने उसमें से थोडा सा पाची पृथ्वी में एक गढ़। कर। कर सा श्रीर्‌ उसके ऊपर एनः कपड। दकता दा } दुरूत ही लब्धि के भमार्व से उस गछ में प्ती उमड़ खाया । हुर एक मनृण्य ने उसमे से अपनी प्यास बुकाई । एक समय श्रीचनविजनजी जगतात रामसीण में विराणते थे। चन-शुदी पूर्णिमा का दि था। उन्ही दिचो रामस्ीण भाँव के कई एक शाबक पालीताणा यात। के लिये गय हुए थे । वे पह।ड के झअ५९ अ्रद्धिए्न < दाद। के दशन कर वाह निकल तो उन्होने वृक्ष के चीच भुर श्री को देखा।




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