प्राचीन भारतीय विचार और विभूतियाँ | Prachin Bharatiy Vichar Aur Vibhutiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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याज्ञवल्क्ष्य भारत के सूगोल् को देखते हुए उसका इतिद्दास जेंसा होना चाहिए यथा, उससे यह स्वथा भिन्न दं । उत्तर के पव॑त-प्रहरियों भोर दक्षिण की सागर-लषरि्यो ने भारत को वाकी संसार से स्पटत. ध्यक रखकर उसे एक निश्चित भौगोलिक इकाई का रूप दिया हं । विन्तु फिर भी उसका पार्थिव एथक्त्व ठसके इतिहास पर विदेशी प्रभावों को नहीं रोक पाया है। वास्तव में सानव-इतिहास की प्राय. सभी प्रमुख विचार-धाराशों ने भारत को मी स्पर्श किया है ओर उसकी संस्कृति अथवा सम्यता पर कुछ ऐसे अमिट লিল জীব ই जिनके कारंण पुक अति मिश्रित एद॑ सवलित व्यवस्था वनकर रद गर्ह ह 1 फारसी, यूनानी, रोमन, सीधि- यन, यूह-घी, हण, मुस्लिम शोर यूरोपीय सभी विचार-धाराझं ने सार- तीय सभ्यता नामक इस विचित्र मिश्रण के निर्माण में विभिन्‍न तत्त्व प्रदान किये हैं; किन्तु इस सम्यता का शिक्षाघार हण्डो-आयन ही है ओर यह आधार समस्त परिवतनों के दौरान में और इस सम्यता की विभिन्न अ्रवस्थाओं में चना रहा है । मारतीय सम्यता कौ नवि लगभग >०००-१००० ट ० पू७ में पढ़ी, जिस दौरान में यहाँ की भरत नामक एक जाति के नास पर भारतवर्ष कहलाने वाले इस मह्दाद्वीप को बसाने तथा सभ्य बनाने का काम आया द्वारा आरम्म ओर प्राय समाप्त किया जा चुका था। भारतीय सम्यता के इस प्राथमिक शोर निर्माणकालीन युग का प्रतीक भारतीय श्रार्यौ की विभिन्‍न संस्थाएँ तथा उनका साहित्य है और इस युग को दूसरे युगो १५




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