तरंगित हृदय अथवा विचार तरंगमाला | Tarangit Hradaya Athava Vichar Tarangmala
श्रेणी : विज्ञान / Science
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
506
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं॰ देवशर्मा जी - P. Devsharma Ji
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)শ্গীইসু
विचार तरंगमाला
ु तरंग १
जा नमस्कार 3৮
-ए > (874৬৩
हे जगन्मातः ! में तुम्हें नमस्कार करता हैँ। अपने दोनों
हाथोको जोड़कर तुम्होरे चरणोमे सिर भुकाता हूँ।
अपने प्राण ओर अपान, खुख और दुःख, ईप्सा और जिद्दासा,
राग ओर द्वेष, लाभ और हानि, मान और अपमान, जय और
पराजय, सिद्धि ओर असिद्धिके दाये और बायें दाथोको
जोड़कर, हे मातः ! में तुस्दारे चरणौमें रखता हैं। में अपने
इन दोना हाथोकों जोडकर--पूरी तरह मिलाकर दी अव
णन करना चादता ह ओर अपने श्रहंकारङ्े मस्तकको . ८
शक्कर सदा लिये तेरे चरणे समर्पित कर देना चाहता
| मातः! म कव यह् परिपूरं नमस्कारकर छतङ्ृत्य हो
सक्ल्गा ? मेरा तो परम परम पुरुषार्थ यही है कि कभी ऐसा
अपना सर्वभावेन नमस्कार तेरे चरणामे निवेदन कर सकं ।
গু শু
तुस्टे नमस्फार परनेके अतिरिक्त और में वथा करट! तुम
User Reviews
No Reviews | Add Yours...