भवभूति की कृतियों का नाट्यशास्त्रीय विवेचन | Bhavabhooti Ki Kritiyo Ka Natya Shastriya Vivechan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
245
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)परवतीं ग्रन्थो मे उद्धृत ये अश किन्ही नाट्य-विषयक स्वतत्र ग्रन्थो से सम्बद्ध है या
नही, इस सम्बन्ध मे प्रामाणिक रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है । परन्तु इतना अवश्य है
कि बहुत प्राचीन काल से आचार्य भरत के पूर्व ही नाद्य-विद्या पर स्वतत्र ग्रन्थो का प्रणयन होना
आरम्भ हो गया था ।
आचार्य भरत और उनका नादयशास्त्र
नाटयशास्त्रीय ग्रन्थो के निर्माण की मूर्त परम्परा का प्रवर्तन आचार्य भरत के
'नाट्यशास्त्र' से हुआ | उनके विषय मे प्राय सभी विद्वानो का अभिमत है कि वे महान्
प्रतिभाशाली तथा युग प्रवर्तक महापुरुष थे । उनका नाटयशाख' एक विश्वकोशात्मक रचना हे,
जिसमे अनेक शिल्पो, नानाविध कलाओं ओर विभिन विद्याओ का दिग्दर्शन होता है ।
आचार्य भरत का व्यक्तित्व सस्कृत साहित्य मे सर्वत्र व्याप्त है । नाटयशास्त्र के निर्माता
के रूप मे उनका नाम विश्वसाहित्य मे अमर है । उनका यह महान् ग्रन्थ, चारो वेदों का दोहन
कर पञ्चम वेद के रूपमे विश्रुत है ओर अपने निर्माता के यश एव गौरव को सुरक्षित बनाये
हुए है।
भरत किसी सम्प्रदाय, शाखा या चरण का नाम न होकर व्यक्ति विशेष का नाम था ।
उनके बाद उनकी परम्परा को आगे बढ़ाने वाले उनके सौ पुत्रों या शिष्यों द्वारा उन्हीं के नाम से
उसका प्रचलन हुआ । व्यक्ति विशेष के लिए भरत शब्द का प्रयोग अनेक परवर्ती ग्रन्थों में
देखने को मिलता है । इस प्रकार के ग्रन्थो मे मुख्य रूप से महाकवि कालिदास के
विक्रमोर्वशीयम् ओर नाटककार भवभूति के उत्तररामचरितम् का नाम उल्लेखनीय है ।
कालिदास ने विक्रमोर्वशीयम् के एक सदर्थं मे नेपथ्य से देवदूत द्वारा कहलाया है चित्रलेखा,
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