प्राचीन जैन स्मारक | Prachin Jain Smarak

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Prachin Jain Smarak by ब्रह्मचारी सीतल प्रसाद - Brahmachari Sital Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१३) नाम विदर्भ देश पड़ा, इसका समर्थन “भागकतपुराण ' से भी होता है। भागवतपुराणके पांचवे स्कन्धमें ऋषभदेव महारा- जका वणेन है । वहां कहा गया है कि ऋषमदेवने अपने कुल. राज्यके नव हिस्सेकर उन्हें अपने नव पुत्रोंमें वितरण कर दिये। कुश नामके पुत्रको जो माग मिला वह कुश्चावते कहल/या। बह्मको जो देश मिला उसका नाम ब्रह्मावते पड़ा, इसी प्रकार विद नामक कुमारकों जो प्रदेश मिला वह विद देश कहलाया | मेन पुरा- णोमें ऐप्ता कथन नहीं है । आनकल इसप्त देशको वहाड कहते हैं जो विदर्भक। ही अपभ्रश है, पर वहाडकी व्युत्पत्तिके विषय्मे भी अनेक दनन्‍्तकथायें, अनुमान और तर्क लगाये जाते हैं | कोई कहता है वरयात्रा ब बरहाट! व बरात' से बहाड बना है। इसका सम्बंध कृष्ण और रुक्‍्मणीके विवाहकी वरातसे बतलाया जाता है । कोई वर्धाहार व वर्धातट-अर्थात्‌ वर्धाके पासका-देशसे वहा- डरूप सिद्ध करता है । कोई विराट ब वैराट राजासे वहमाडका सम्बन्ध स्थापितं करता है इत्यादि, पर ये सब मिरी कल्पनं ही प्रतीत होती हैं । विद्म देशका उल्लेख रामार्यण और महाभारतमें अनेक जगह पाया जाता है | अगस्त्य ऋषिकी पत्नी लोभामुद्रा, इक्ष्वाकुवंशके राजा पगरकी रानी केशिनी, अजकी रानी इन्दुमती, नरराजाकी रानी दमयन्ती, छष्णकी रानी रुविमणी, प्रदुञ्नकी रानी द्युभांगी,. अनिरुढकी रानी शुकमावती ये सब विद्म देशकी ही राजकुमा- रयिं थी । रुक्मिणी भीष्मक राजाकी कन्या व स्वमीकी बहिन थीं। मीप्मककी राजधानी कौण्डिन्यपुर थी जिसका आधुनिक नाम




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