वैदिक चिकित्सा | Vaidik Chikitsa
श्रेणी : स्वास्थ्य / Health
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.38 MB
कुल पष्ठ :
160
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand) झादिवयद्दी निश्चयसे पाण दे । जब आदित्य प्रकादामान दोता है तब
चह सब प्राणोंको अपने किरणोंमें रखता हे. । ” तात्पर्य स्यंकिरणोंक
द्वारा सब जगतमें प्राणतत्वका संचार होता हे । जद्दां प्राण पहुंचता दे
चदांसे सत्युका दूर होना स्पष्टदी दे। इसलिये घरोंकी रचना ऐसी
दोनी चाहिए कि सूर्यकिरणाक द्वारा प्राण सं घरकी शुद्धता करके और
रहनेके घरोप खत्युकों दूर काल देवे । रोग उत्पादक कृमियोंका नाथा
सूर्यकिरणद्वार होता दे ऐसा सी वेदर्मे कहा दे, चह सब यहां भनु्स-
थानसे देखनेयोग्य दे । न
सौरचिकित्साद्वारा योगी लोग 'घडा छाभ उठाते हैं । प्राणायासद्वारा
इस प्राणपूर्ण तप्त वायुकों अंदर लेते भर कुमकट्वारा झाणकों अपने
स्थिर करते है । अन्य प्रकार युक्तिप्रयुक्तिसे सूयकिरणोकि द्वारा
आरोग्य संपादन करना सोरचिकित्सामे दो सकता है ।
विविध रंगोवाले योवोके दूधके विविध इ्ट और अनिष्ट परिणाम
सौरचिकिर्सा किवा चर्णचिकित्साके साथ संबंध रखते हे । इस घिषयमें
बहुत लिखा जा सकता हे, परंतु विस्तारभयके लिये यद्दां इतनाही
लिख कर भव क्रमप्राप्त चायुचिकित्साका स्वरूप बताता हूँ |
(७) चायु-चिकित्सा ।
चायुद्दी प्राण बनकर शरीरमें आकर रददा हे यह उपनिषदोंका कथन
डे । चायुर्मे अस्तका खजाना ” दे ऐसा ऋ० १०११८६ सूक्तमें कद्दा
डे । जददां अस्त दे चद्दां रोग नहीं हो सकते; इसलिये अखतका खजाना
लेकर जहां वायु पहुंचता हैं, वहां नीरोगता प्राप्त हो सकती है। यददी
वायुरचिकित्साका सूख वेदमें दे । तथा--
ना चात चाहि भेषज दि चात वाहि यद्रपः ।
त्वं हि विश्वभेषजा देवानां दूत इयसे ॥. ( कऋ० १०।१३७३
*« हे वायो ! तुम्द्दारी दवाई ले आाभो आर यद्दांस सब दोप दूर करो
क्योंकि दू दी सब भोषधियोंसे युक्त दे ।”
२ (वे. चि.)
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