आत्म कल्याण का मार्ग | Aatmakalyan Ka Marg

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Aatmakalyan Ka Marg by आचार्य श्री रामलाल जी - Achary Shri Ramlal Ji

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about आचार्य श्री रामलाल जी - Achary Shri Ramlal Ji

Add Infomation AboutAchary Shri Ramlal Ji

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
श्री गुम उदाव হলেই 9 दूसरे संत भी आये तब गुरु ने कहा- <ुक्करं”, तुमने दुष्कर कार्य किया है | किन्तु स्थुलिभद्र से कहा- महादुक्कर- महदुक्कर | महादुष्कर कार्य संपन्न किया है । उनके मन मे विचार आया- यह कैसी प्रशंसा । हमने तो चातुर्मास विकटतर स्थितियों मे सम्पन्न किये! कुएं की मेड पर किये, एक पकी आ जाती तो भीतर गिर जाते, साप की बांबी पर रहे, हिले तक नहीं अन्यथा सांप डस लेता! फिर भी कहते है दुक्करं ओर स्थूलिभद्र ने तो चातुर्मास गणिका के रंगमहल मे किया फिर भी उनके लिये कह दिया- महादुक्कर। दूसरी वार प्रसंग आया तो सोचने लगा- कोई दूसरा मांग न ले अतः पहले कह दिया- “गुरुदेव! मे कोशा गणिका के यहां चातुर्मास करूंगा |” गुरु ने कहा- तुम्हारे लिए प्रशस्त नहीं है । एेसी कई बाते हैं? चले गये, क्या दशा बनी? संयम से विचलित हुए या नहीं? वह तो कोशा श्राविका बन चुकी थी। उसने विचलित मुनि को अपनी तरकीब से पुनः संयम में स्थिर कर दिया अन्यथा क्या हालत होती? मैं सारी कहानी नहीं रख रहा हूं | भगवान्‌ ने जो कहा है- गृहस्थ के घर मे नहीं सुकना क्योकि यदि मानसिकता भिन्‍न हुई और मनोबल या तप-भाव पर्याप्त दृढ़ नहीं हुआ तो वहां रुकना कषायवृद्धि का कारण बन सकता है। वैसे संस्कार लगें तो साधु भ्रमित होता है और भ्रमणशील बनता है। इसलिए भगवान ने कहा है- संसार की क्रिया छोड़कर अक्रिय बनो | कवि आनन्दघनजी ने भी कहा है कि- ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम म्हारो.................- एक बार भगवान को रि्ा लिया লী वह संग नहीं छोड़ता, वह सादि-अनंत भंग प्राप्त हो जावेगा | आदि है, पर अंत नहीं है। उस अवस्था का लक्ष्य बने | सुख-विपाक सूत्र की पूर्व भूमिका भी आप सुन गये हैं। उसमें देखना है कि उन्होंने कैसी जीवनशैली अपनाई? उससे दिशाबोध लेकर चिन्तन-मनन करेंगे तो हमारा जीवन धन्य बनेगा | (1)




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now