परम्परा | Parampara

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डगल - कोष १५ (२) करई स्थानों में पर्यायवाची शव्द का रप एकवचनात्मक्र स॒ वहूवेचनात्सक कर्‌ दिया गया है । जैसे, तलवार के लिये-करवांणां, करवा आदि * घोड़े के लिये--हयां, रेवतां साकुरां, अस्सां, जंगमां, पमंगां, हैवरां श्रादि 47 यह केवल मात्राओ्रों की पूति के लिये तथा तुक के झ्राग्रह से किया गया प्रतीत होता है । (३) कहीं-कहीं पर्यायवाची देने के साथ, बीच-बीच में, वस्तु की विशेषताश्रों और प्रयोग आदि का वर्णन करके भी अपनी विशेष जानकारी को प्रदर्शित करने का प्रयत्न किया है। 'नूपुर' के पर्याय गिनाते समय उससे छारीर में हप॑ संचरित होने वाली विशेषता की सूचना भी दी हैः और 'नागरबेल' के पर्यायवाची शब्दों के साथ उसके प्रयोग का जिक्र भी किया है ।४ इसी प्रकार के कितने ही उदाहरण कोष्ठकों में लिये हुए मिलेंगे । (४) विद्वान कवियों ने कई शब्दों की परिभाषा तक देने का प्रयत्त किया है। जैसे, प्राकृत को नर-भाषा, मागथी को नाग-भाषा, संस्कृत को सुर-सापा और पिसाची को राक्षसों की भाषा कह कर समभाने का प्रयत्न किया है।* (५) ऐसे शब्दों को भी किसी शब्द के पर्याय के रूप में स्थान दे दिया गया है जो कि सही र्थं में ठीक पर्याय न होकर कू भिन्न श्रर्थ व्यंजित करने की भी क्षमता रखते हैं। जसे 'स्नेह' के लिए 'संतोष' तथा सुख आदि का प्रयोग ।* इस प्रकार की उदारता थोड़ी-बहुत सभी कोपो में वरती गई है । (६) जसा कि पहले संकेत कर दिया गया है, कई कवियों ने अपनी चतुराई से भी शब्द गढे हैं जो बड़े ही उपयुक्त जँचते हैं। जेसे--ऊँट के लिए 'फीणनांखतो” तथा भश्रर्जन के लिए 'मरदां-मरद'5 शब्द का प्रयोग किया गया है, पर ये शब्द प्राचीन डिगल कविता में उपगेक्त अर्थ में प्रयुक्त नहीं हुए । इस प्रकार शब्द-रचना की स्वतन्त्रता वहूत कम स्थानों पर ही देखने में आ्राती है । (७) वाई स्थानों पर तो शब्दों के पर्यायवाची न रख कर केवल तत्सम्बन्धी वस्तुओं की नामावली मात्र दी गई है | उदाहरणार्थ--सताईस नक्षत्र नांम* शीर्षक के अंतर्गत २७ नक्षत्रों के नाम गिना दिये गये हैं, जोकि सत्ताईस नक्षत्र के पर्यायवाची नहीं कहे जा सकते । एसी प्रकार चौईस ग्रवतार नाम °, सातधातरा नाम ११, वारे रासांरा नाम १ * आदि के सम्बन्ध में भी यही यूक्ति काम में ली गई है । १ डिगल नांम-माक्ा--प० २०, छंद ८. ४ {इगन्‌-कोप --प० १७५, छंद ८१ - अवेधान-माद्या দুল १३४, छंद ४८५ देधान-माकछा--पृ० १४२, छंद ५५६ शप्र ^ ५, ४ अवेधान-माक्का--पृ० १३१, छुद ४६० हमीर নাল नमातछा--प्‌ृ० ६६९, छंद २०१ नागराज डियल-कोप--१० २८, छंद ५ हमार नाम-मद्या-पृ० ५५. द्द १२८ : अवधान-माछा--पृ० १३० छंद ४४८, ४८६, ४५०, ८५१. अवेधान-मातद्ना--1१० १६०, छंद ४४२, ४४८३, ४४४, २ 3 ---पृ% १६३१, सद ४५६, ७. १० १६१, छंद ४५२. 4 + এ শে ह ५ ५५ ५




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