कुवलयानन्द | KuwalyAnand
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
406
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ भोलाशंकर व्यास - Dr. Bholashankar Vyas
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ५]
सिप्रमौमासा पर तौन कयं ह ---धरनदट फी सुधा, वारकृष्ण पायगुण्ड को गृढार्थप्रका
शिका तथा भप्रात लेपकं की चित्रालोक नामक टीका । वृत्तिवार्तिक पर कोई टीका उपलब्ध नहों
* (ै। कुपछयानन्द के केवट फारिकामाग का जर्मन अनुवाद भार० दिमद्ल ने बिनि से १९०७
प्रकाशित कराया था तंथा इसी अंश का अग्रेजी अनुवाद सुब्रह्मण्य शर्मा ने इससे भी पहले
2९०३ में प्रकाशित किया था।
(२)
अप्पय दोक्षित ने अलकारों के अतिरिक्त शब्दभक्ति तथा काव्य-मेद के विपय में भी विचार
किया है। यथप्रि दीक्षित की इस मोमासा में फोई नवीन कल्पना नहीं मिलती, सथापि सादित्य-
शास के जिशासु के लिए इनका शसलिए महत्त्व है कि अप्पय दीक्षित ने अपने पूर्व के आचार्यों
के मत को लेकर उसका सुदर पललवन किया ऐ। जैसा कि एम वता चुके एैँ बाद के प्रायः
सभी भाल्जारिकों ने ध्वनिमिद्यत को मान्यता दे दी है। दीक्षित के उपजीन्य जयदेव स्वय भी
चन्द्रालोक में ब्यक्षना गृत्ति' तथा ध्वनि का विवेचन करते हैं । सप्तम तथा अष्टम मयूख मे
चन्द्रालोककार ने ज्यश्ना, ध्वनि तथा शु॒गीभूतव्यग्य का वर्णन ध्वनिवादियों के हो सिडान्तों
का सद्दारा लेकर किया है। अप्पय दीक्षित ने चन्द्रालेकफार की भाँति काव्य के समस्त
उपकरणों का वर्णन नहीं किया ऐै। उनका रुष्ष्य प्रमुख रूप से अलकारों तक ছা ঘা ই, নং
पृत्तित्रात्रिक तया चित्रमामासा के प्रस्तावनाभाग में क्रमश शब्दशक्ति तथा काव्य के ध्वनि
शुगीभूतव्यग्य एवं निश्रकाज्य नामक भेदों का सकेन अवन्य मिलता है।
कषप्पय दीछित तथा दाब्दुशक्ति --पृत्तिवानिक में अप्पय दीक्षित की योजना अभिषा,
॥ কযা খা स्यजना पर विशद विचार करने की थी, किन्तु प्रस्तुत बन्ध केवल प्रथम दो शक्तियों
पर एऐों मिलना एै। रक्षगा के प्रकरण के साथ छा वह दोटास्सा अन्य समाप्त पी जाना है।
गृत्तिवार्निक के प्रस्तावना इशेकों से पता चलता ऐ जि टीक्षित व्यक्ना पर भी विचार करना
नाप्ते एमि 1? प्रुत वन्य अधूरा क्यों रए गया इसके दारे म द धान नर् # किन्तु यदु
निश्चित ६ कि अष्पय दीक्षित ने बवृक्तिततिक त्ृथ' सलिग्रमीमासा दोनों ग्रर्था को पूरा लिया
रीनथा।
१ सामुणय्य विदषधानाया रफ़्व्मर्थानतरे गिर: 1
फसा दव न्ने क्वा লাবাহী নামক ॥ { चन्द्राटोफ ७-२ )
4॥
गृष्छदय बायसरभावरझार प्रताधूमि !
এশিক্ষা লহ यरिरिति লিক নিকিতা ও
ध হশিশেশিযউিটিইখানযিএতহাব ।
निश्कमितुमस्मानित कियते एक्तिशानिमम॥ (६छित्ा्िक १० १. )
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