दक्खिनी हिंदी | Dakkhini Hindi

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Dakkhini Hindi  by बाबूराम सक्सेना -Baburam Saksena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१८ | दक्खिनी हिन्दी भरती हुए । महानुभाव पन्थ के प्रवततक चक्रधर थे, इन्होंने १२६३ से १२७१ ६० तक अपने मत का प्रचार किया ओर फिर बदरिका- श्रम चले गए | इनके वचनां का संग्रह इनके शिष्य महीन्द्रभर ने किया । यदी वचन श्राचायेसूत्र श्रोर सिद्धान्तसूत्रपाठ नाम से, इस सम्प्रदाय के मूल ग्रंथ हैं। महिमभट ने अपने गुरु की जीवनी भी लीलाचरित नाम की लिखी। ये तीनों पुस्तकें गद्य में है । चक्रधर के दूसरे चेले भास्कराचाय ने शिशुपालवध नामक काव्य रचा | यादववंशी राजा इसी महानुभाव पन्थ के अनुयायी थे । देवगिरि मं (१३२७ ३० में) मुस्लिम राज्य कायम हो जाने पर भी महानुभाव पन्थ थोड़े दिन चलता रहा । यद्‌ मूत्ति-पूजा के विरुद्ध था, इसलिए इसको मुसलमानों द्वारा उतनी हानि न पहुँची जितनी अन्य मतों को। पर यही मुस्लिम संरक्षा इस सम्प्रदाय के लिए घातक सिद्ध हुई क्योंकि हिन्दू जनता इसी कारण उसे संदेह की दृष्टि से देखने लगी। इस सम्प्रदाय के ख्त्तम हो जाने का दूसरा कारण यह भी दिया जाता है कि इसके संचालकों ने अपने ग्रंथ ऐसी ग॒प्त लिपि मे लिखे जिसका परिचय केबल विशेष दीक्षा- प्राप्त शिष्यों को था | कुछ भी हो, महानुभाव पन्थ के-करीब बारह ग्रंथ ऐसे मिले हैं जो वाकरी पन्‍्थ के आदि म्रंथों से पहले के है । महाचुभाव पन्थ की निशरबत वाकरी पन्थ अधिक लोकपभिय साबित हुआ । इसके सन्‍तकवि मराठी भाषा के आदि कवि सममं जाते हैं| ज्ञानेश्वर को मराठी का आदिम साहित्यकार कहा जाता हे । इन्होंने भावार्थदीपिका नाम की भगवद्गीता की व्याख्या १२६० ६० म॑ बनाई । इसी को ज्ञानेश्वरी भी कहते है । इसके श्लाचा अमृतानुभव नाम का एक दशेन-प्रंथ और कुछ स्तोत्र और भजन भो इनकी कृति हँ । इतना काम इन्होंने २२ साल की अवस्था में कर




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