तीर्थकर विचार मासिक | Tirthkar Vichar Masik
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
282
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पड़ें ही उन्हें श्री शान्तिताथ भगवान का সীল होता । वे नमस्कार करते । जस्त में
विज्वारों के मस्यन से संकल्प उभरो ! संकल्प था- है भ्रभो ! आप हीं मुझे इस
विषम ज्यर से बचावेंगे यदि मैं बच गया तो आजीवन ब्रह्मचर्य ब्रत धारण करूंगा,
महात्मा गांधी जैसा भेरा वेश होगा । धर्म-सेवा और राष्ट्र-सेवा मेरा अविचल त्रत
होगा 1
श्री जिनेश्वर की कृपा और संतों के आशीर्वाद से सुरेन्द्र ठीक हो गये । बीमारी
में खान-पान का पथ्य पालते-पालते सुरेन्द्र मत से ही सयमी बन गये । ईश्वर-भवित मे
अतर्मुख बन गये। ससार के अनुभवों के कारण विषय-वासनाओं से अनासक्त बन
गये। जो सस्कार मत पर पहले से ही थे, जो सस्कार बीज रूप में विद्यमान थे, वे अब
फल-फूलकर लहलहाने लगे। अनुभव-कोंपलें बढने लगी। ज्ञान-रूपी कुलियाँ खिलने
को उद्यत हो उठी ।
फिर एक चातुर्मास आया ! सन् १९४६ का चातुर्मास !! संयम-मूर्ति,
शान-सूर्य महामुनिराज श्री महावीरकीतिजी ने शेडबाल मे ममल-विहार किया। रोग से
जर्जर सुरेन्द्रं को मानो अमृत मिल गया । आत्मिक शान्ति की सजीवनी से सुरेन्द्र का
पुनर्जन्म हुआ ।
सुरेन्द्र प्रतिदिन मुनिजी के उपदेश सुनते । रोज उपदेश सुनकर वे कर्मफलों
के आवरणो से उबरने लगे। आत्मा के आनन्द में मग्न सुरेन्द्र, मुनिजी के सान्निध्य मे
बने रहते । अपटूडेट वेशभूषा मे रहने वाले सुरेन्द्र ने बिलकुल सादा वेश धारण कर
लिया । माता-पिता ओौर इष्ट मित्रो को चिन्ता हुई, मगर सुरेन्द्र ने अपने मन की बात
औरो पर प्रगट नही की। सारे ग्राम वासियों ने इस परिवर्तन को देखा। सासारिक
सुख, मोह-माया को त्याग कर सुरेन्द्र दूसरा ही मागे चुन रहे है, यह देखकर माता-पिता
को गहरी चिन्ता होती। सुखो के स्वर्ण-पिजरे मे बन्द मनका हीरामन, पिजरे से
उड़ने के लिए तैयार था, वीतरागी बनने के लिए कृत-सकल्प धा ।
प्रतिदिन नियम से उपदेश सुनने के लिए आने वाले सुन्दर युवक की ओर
मूनि महानीरकीतिजी का आष्ट होना स्वाभाविक ही था । सुरेन्द्र की ज्ञान-पिपासा
ने उन्हे प्रभावित किया) वे बड़े प्रेम से सुरेन्द्र से बाते करते और उनके बिचारों को
सुनकर आनन्दित हो उठते ।
ऐसे ही एक दिन सुरेन्द्र ने स्व/मीजी से जात-रूप की दीक्षा की याचना की।
मुनिजी प्रसन्न थे, मगर सुरेन्द्र की छोटी अवस्था देखकर माता-पिता से अनुमति लेने
भुनिञ्नो विश्वानन्द-विशेषांक १७
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