उपासकदशांग सूत्र | Upasakadashang Sutra

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : उपासकदशांग सूत्र  - Upasakadashang Sutra

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about ब्रजलाल जी महाराज - Brajalal Ji Maharaj

Add Infomation AboutBrajalal Ji Maharaj

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
के रूप मे व्याल्यात किया है, जिसमें मागधी मे प्रयुक्त होने वाले ल और श का कही-कही प्रयोग तथा प्राकृत का भ्रधिकाशत: प्रयोग था ।१ व्याख्याप्रशप्ति सूत्र की टीका मे भी उन्होंने इसी प्रकार उल्लेख किया है कि श्रद्धंमागधी में कुं मागधौ के तथा कृच प्राकृत के लक्षण पाये जाते है । आचाय अभयदेव ने प्राकृत का यहाँ सम्भवत' शौरसेनी के लिए प्रयोग किया है । उनके समय में शौरसेनी प्राकृत का श्रधिक प्रचलन रहा हो । श्राचाय हेमचन्द्र ने अपने प्राकृतव्याकरण मे श्रद्धमागधी को ्राषं [ऋषियो की भाषा | कहा है । उन्होंने लिखा है कि आषंभाषा पर व्याकरण के सब नियम लागू नही होते, क्योकि उसमे बहुत से विकल्प है ।* इसका तात्पयं यह ভগা कि श्रद्धमागधी मे दूसरी प्राकृतो का भी मिश्रण है । एक दूसरे प्राकृत वैयाकरण माकंण्डेय ने भ्रद्धंमागधी के सम्बन्ध में उल्लेख किया है कि वह शरसेनी के बहुत निकट है भ्र्थात्‌ उसमे शौरसेनी के बहुत लक्षण प्राप्त होते है। इसका भी यही प्राशय है कि बहुत से लक्षण शौरसेनी के तथा कुछ लक्षण मागधी के मिलने से यह श्रद्धमागधी कहलाई । क्रमदीश्वर ने ऐसा उल्लेख किया है कि अ्रद्धंमागधीमे मागधी श्रौर महाराष्ट्री का मिश्रण है । इसका भी ऐसा ही फलित निकलता है कि अद्धंमागधी मे मागधी के अ्रतिरिक्त गौरसेनी का भी मिश्रण रहा है श्रौर महाराष्ट्री का भी रहा है। निशीथर्चाण मे अद्धंमागधी के सम्बन्ध मे उल्लेख है कि वह मगध के श्राधे भाग में बोली जाने वाली भाषा थी तथा उसमे अट्टाईस देशी भाषाओं का मिश्रण था । इन वर्णनो से ऐसा प्रतीत होता है कि अद्धमागधी उस समय प्राकृत-क्षेत्र की सम्पर्कं-भाषा (1.78ए4-71७॥०४) के रूप में प्रयुक्त थी, जो बाद में भी कुछ शताब्दियों तक चलती रही । कुछ विद्वानों के अनुसार प्र्लोक के प्रभिनेखो की मूल भाषा यही थी, जिमको स्थानीय रूपो मे रूपान्तरित किया गया था ।3 भगवान्‌ महावीर ने श्रपने उपदेश का माध्यम फेनी ही भाषा को लिया, जिस तक जन- साधारण की सीधी पहुँच हो। श्रद्धमागधी मे यह वात थी। प्राकृतभाषी क्षेत्रों के बच्चे, बूढे, स्त्रियाँ, शिक्षित, प्रशिक्षित--सभी उसे समझ सकते थे । १ अ्रद्धमागहाएं भासाए त्ति रसोलंशौ मागध्यामित्यादि यन्‍्मागधभाषालक्षण तेनापरियूर्णा प्राकृतभाषालक्षणबहुला अरद्धमागधीत्युच्यते । -उववाहं सूत्र सटीक पृष्ठ २२४-२५ । (श्रीयुक्त राय धनपतिसिह बहादुर भ्रागम सग्रह जैन बुक सोसायटी, कलकत्ता द्वारा प्रकाशित) २. भ्राषं--ऋषीणामिदमाषेम्‌ । झाष॑ प्राकृत बहुल भवति । तदपि यथाम्थान दशंपिष्याम । आर्ष हि सर्वे विधयो विकल्प्यन्ते ॥ --सिद्धहेमशब्दानुशासन ८ १ हे । ३ भाषाविज्ञान डॉ भोलानाथ तिवारी पृष्ठ १७८ 1 (ध्रकाशक--किताब महल, इलाहाबाद १९६१ ई ) [ १६ |




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now