संस्कृत काव्यों में पशु पक्षी | Sanskrit Kavyo Mein Pashu Pakshi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
448
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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जाता है. डा० शर्मा ने इस विषय वा चयन कर बह्तुत झपनी सौलिक सुझ का
परिचय प्रस्तुत जिया है मह शोध प्रचाव सस्द्ृत वाड मय के बिसरे हुए पशु
एमियो का सग्रह प्रयवा नाम गणना ही नहीं है श्रपितु पशु पक्षियों का वचानिक
अध्ययन है अ्रथवा थो बहना चाहिये कि एक प्रयोगशाला है जिसमे पशु पक्षियों
के स्वभाव भूल उदगम उनवी दनिक चर्या उनकी श्रान्तो का परीक्षण आदि का
सम्यक प्रध्ययन किया गया है. मानव जगत् के साथ उनके सम्बाबों का भष्ययव
मनावशानिक हृष्टि स उसका परिशीचन, साहित्यकारों की भनुभूतियों के साय
प्रभियत्तिकरण श्रादि का पूण परिचय एवं विशिष्ट चान हमें इस प्र थ के माध्यम
स सुलभ हो जाता है सस्हृत-साहित्य मे पशु पक्षियां वो चणन तो पछुर मात
में उपलब्ध होते हैं किन्तु किसी एक धर थ के माध्यम से हम पशु पक्षि जगत वा
सम्पूण भ्रध्ययत श्रथवा परिचय प्राप्त नहीं कर पाते इस शोध प्रवाप्र के
माध्यम ५ हमें इस जगत् का सम्पूण परिचय मिल जाता है->यह सस्बृत बाड़ मय
की नावृद्धि में एक सफल की है
लेक्षब ने वाजिदास एक कालिटासात्तर कावब्यों' तक ही झपने शोध प्रबाघ
बी सीमित रखा है यद्यपि सम्पूण ससरठृत साहित्य में प्रकृति वित्रणोे के साथ
पशु-पक्षियों के विविध दृश्य उपस्थित होते हैं. कितु प्रमप्र साहिय के सामलेशर
चलते से विपय प्रत्यन्त विस्तृत होने की सम्भाववा थी--स्ाथ ही पिप्ट पेषण की
प्राशवा भी बन सकती थी इस हष्टि से নিল ने महाकवि वालिदाम श्रश्वचोष,
भारवि दण्डी माप वाष्टामट्ट, श्रीहए सुबधु श्रादि प्रमुस सस्दृत साहित्यारो
का चयत कर इसके वाड मय से पशु पक्षियों का बन्चानिक प्रध्ययन प्रस्तुत किया
है ये सभी कवि सस्कृत साहित्य के प्रतिनिधि कवि ह तथा समस्त सृतः बाड़, भय
के भ्राधिकारिक व्यति-व हैं
यहे शोव प्रवय ५ भरध्यायों भे विभक्त है लेसक क्या মুল प्रतिपाद्य पव्या
मपु पटी है भरत सवप्रथम लेखक न 'काव्य' शब्” का सम्यक विश्लेषण
किया है प्राचीन एक धर्वाचीन सनीपिया वी काव्य-माजतायें अस्तुत कस्ते हुये
डा० शर्मा ने क््राचाय मम्पठ के शाव्य सलस की प्रशत्ता करत हुये लिया है--
* मन्मट कै रपव्य लक्षण को उत्तम स्योकारने से कोई बाघा अतीत नहों होतो ”
इस्तुत श्राचाय मम्मट की काव्य परिभाषा अलक्षारवाही होते हुए भी भ्रत्यधिक
सुर हयी है इमे लमा में बुछ परिवतन करते हये प्रनेक पाचायों ने प्रपते
अपने पृथक पृथक भत प्रस्तुत क्य हैं बुद्ध न मम्मट वा सण्डन किया है और
कुष्ठ से मण्डव भ्राचाय जयप्लाथ का काच्य लक्षण- “रमणीया प्रतिपाद
शब्द वाव्यम् सस्हत्र काव्य-समीक्षयों का अन्तिम श्वम्िमत है--जो शाचाय
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