बाँसुरी | Bansuri

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Bansuri by पं. सोहनलाल द्विवेदी - Pt. Sohanlal Dwivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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झ्ोस हरी घास पर बिखेर दी हैं ये किसने मोती की लड़ियाँ-? कौन रात में मूँथ गया हें ये उज्ज्वल हीरों की कड़ियाँ ? जुगनू से जगमग जगमग ये कौन चमकते हैं यों चमचम ? नभ के नन्हें तारों से ये कौन दमकते हैं यों दमदम ? छुटा गया. है. कौन जौहरी अपने घर का भरा ख़ज़ाना ? पत्तों पर, फूलों पर, पग पग, बिखरे हुए रतन हें नाना ! बड़े सबेरे मना रहा. है कौन खुशी में यह दीवाली !. वन उपवन में जला दिया दे किसने दीपावली निराली ? जी होता; इन ओस-क्णों को अंजलि में भर घर ले जाऊँ; इनकी शोभा निरख निरख कर इन पर कविता एक बनाऊँ! ! द




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