बाँकीदास ग्रन्थावली | Bankidas-granthwali

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Bankidas-granthwali by महताब चन्द्र खारैड - Mahatab Chandra Kharaid

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) हैं। डिंगल भाषा में गीत-रचना ही प्रधान मानी जाती है और बारहट कवि गीतो का बहुत ही सावधानी, चतुराई, रज छर शक्ति से भरकर कहते हैं। फिर उनका बोलना बहुत ही आग उनमें फू क देता है। उनके मुख की 'सरस्वती” उनके गीतों का सौंगुना रोचक और मज़ेदार बना देती है । इसके गीतों ने कायडें का वीर बना दिया, गई बोती लड़ाइयें का जय प्रदान करा दी, भगोड़ों के दिल्लों में वीर-रस भरकर युद्ध में लड़ाकर जय दिल्ला दी, रियासतें उल्टी दिल्ला दी और न जाने कितने ओर गजब? ढा दिए। इसी रंग-ढंग के गीत बनाने ओर कहनेवाले बॉकीदासजी भी थे। “फुट संग्रह” के गीत सं० ( १७ ) में बॉकीदासजी ने स्वयं अपनी विद्या, प्रतिभा और जानकारी को बताया है। इसकी पढ़ना उथित रहै । .“चौंसठ अवधान ( २) बाँकीदासजी के संबंध मं सीतारामजी लालस धपुरवाल्ते लिखते हें :- ( के ) “बाँकीदासजी के पिता फतहसिंहजी का विवाह _ वागसी कौ सरव परगना सिवाना, इलाका जेाधपुर, मं हन्ना था। बांरौदासजी के मामा चार भाई थे। बचपन में बाँकीदासजी ने कुछ समय तक सरबड़ी गाँव [मरथात्‌ ननिहाल ही ] में विद्या प्राप्त की थी। एक समय जब वे १३ ही वर्ष के थे [ संभवत: संबत्‌ १-४१ वि० हा ]तो उनको उनके मासा ऊकजो बाले गाँव के ठाकुर नाहरसिंहजी के पास ले गए |




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