रघुनाथ रूपक गीतांरो | Raghunathrupak Geetanro

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Raghunathrupak Geetanro by महताब चन्द्र खारैड - Mahatab Chandra Kharaid

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) हों? * मछ कवि ने नाथों की स्तुतिमय काव्य रचकर महाराज को सुनाया | महाराज ने प्रसन्न होकर संमान किया और मंछ कवि के पुश्त दर पुश्त २) रु० रोज--श्रर्थात्‌ ७२०) रु० सालाना नियत कर दिया । राज-संमान से मछ कवि का और भी मान बढ़ा । मंछ कवि श्रीरघुनाथ जी के परम भक्त थे श्र रामायण के प्रेमी थे | उन्होंने सोचा कि डिगल भाषा में भी श्रीरमचद्रजी का यश-वर्णन द्ोना चाहिए । श्रतः उन्होंने यह ग्रंथ बनाया और इसका नाम “रघुनाथरूपक गीर्तारो” रखा। डिंगल भाषा में गीत-रचना ही प्रधान है, ओर कवि ने “होना और सुगघ की कद्दावत चरितार्थ कर दिखाई। इस एक, ही अ्रंथ में डिगल भाषा की कविता की रीतियाँ, छंदभेद, छंदलक्तणः, श्रककार, गुणदोष, काव्य रचना है--इन सब में ( थोथे नायिका भेद में नहीं, वरन ) # नोट--म० मानसिंद जी के समय के कुछ कवि, जिनमें सेवक सोजक भी हैं, जाने गए हैं. जिन्होंने इस विषय में कविता की है.--( १ ) छक्म्मीनारायण वीढ़ा कृत मजन विला्तत ( जलंधरनाथनी के भजन ), ( २ ) तिछोक सेवक দ্ধন 'मानवत्तीसी! ( राधिका-मान वर्णन ), 'रानविलारस ( म० मानतिद्दजी के राज्य का वर्णन ), (३ ) दोल्तराम सेंवक कृत “नंधरनाथजौ का राजस्त' ( जलधरनाथजी की कथा ), (४ ) संतोकीराम कृत 'जलूधरनाथरा रूपक ( जलूघरनाथजी की स्तुति ), (५ ) मनोद्दरदास सेवक कृत 'नसकआमभूषणचद्रिका ( पिंगछ और अलं- कार ), (६ ) वपसीराम गाडूराम सेवक कृत 'जप्तभूपर्णा ( जल्घरनाथजों का जस ), लपरूपक्र ( जोधपुर मद्दाराज मानसिंदजी का यश ), 'जनीख्यात' ( राजा वादशा का पुराना इतिद्यप्त ), ८ ७ ) ताराचद व्यास छत 'नाथानद प्रकारा ( जलघरनाथजी की कथा ), ( 5 ) 'रिक्ववार कवि जोधपुर कृत “नाधनो के कविते ( जांधरनाथनी की प्रशसा ) । श्तसे प्रगट शोगा कि उस समय सेवग कोग कलने कवि दते ये ओर मद।रान भो कवियों के कितने याष्टक ये तथा उनके यदो योगी नार्थो के मत का कितना गौरव और प्रचार था।




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