कहो व्यास, कैसी कटी | Kaho Byas, Kaisi Kati

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Kaho Byas, Kaisi Kati by गोपाल प्रसाद व्यास - Gopalprasad Vyas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पढ़ाई की कोई डिग्री प्राप्त नहीं की । जो किसी बड़े बाप का बेटा, या किसी बड़े या मझोले नेता की पत्नी का सगा या मुंहवोला भाई भी नहीं | जिसका संबंध राजनीति के इस या उस दल के साथ भी नहीं जुडा। याजो स्वराज्य से पहले या उसकं वाद किसी आंदोलन में जेल जाने का सर्टिफिकेट भी प्राप्त नहीं कर सका। हमारे देश में बिना जेल गए कोई बड़ा आदमी बना है ? बिना पद से हटे, या हटाए कोई चर्चित हुआ है ? पत्रकार तो हमारे देश में बस वही उल्लेखनीय होता है, जिसे या तो सरकार अपना ले, या उसे किसी महाशक्ति का प्रत्यक्ष या परोक्ष समर्थन प्राप्त हो | वह प्रायः नामधारी प्रधान संपादक होता है या मालिक संपादक या राजनीतिक दलों और विदेशी एजेंटों का चहेता । उसी की आजादी पर अखबार की आजादी निर्भर है । अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का आंदोलन भी सिर्फ इसी वर्ग के लिए है | अगर मैं वह हो गया होता, तो मेरी कहानी भी कहने ओौर सुनने योग्य बन जाती । मैं आपको अच्छी तरह जानता हूं कि आप ऐसे रोग के रोगी हैं, जो अपना ध्यान एक जगह केंद्रित नहीं कर सकते । दैनिक पत्रों, साप्ताहिकों और मासिकों में आपकी रुचि सिर्फ इतनी ही रह गई है कि चलते-फिरते उनके शीर्षक देख लिए, कला के नाम पर कोई नगी-जधनंगी तस्वीर मिली तौ उसे घूर लिया, कीं कोई निंदा- रस प्राप्त हुआ तो उसकी चुस्की ले ली और जुट गए वैल की तरह जीवन के कोल्ू में । मरीज अच्छा हो या न हो, मरे या तड़फड़ाता रहे, मेरे हाथ कलम का इंजेक्शन लग गया है, मैँ उसे आपकं ठोकूंगा ही | क्योंकि मैं यह भी जान गया हूं कि आपकी सहनशक्ति बड़ी अद्भुत है । कितनी महामारियां इस देश में आई, आप बच ही गए । हर साल सूखा, बाढ़, लू और शीतलहर आती है और चली जाती है, फिर भी आप जिंदा हैं। अन्याय, जुल्म और सितम तो आप हजारों वर्षों से सहते रहे हैं। आपने अंग्रेज भी सहे और अंग्रेजी भी सह रहे हैं। आपको पराधीनता का भी अहसास है और आज की स्वतंत्रता का भी, आपातकाल में भी आप शांत रहे और महंगाई, मुदरास्फीति तथा लूटमार ओर बलात्कार भी आपको क्लांत नहीं कर सके हैं। आपकी स्थितप्रज्ञता को नमस्कार करते हृए मैँ अपनी कलम उटा रहा हू । फिर कहीं आप दोष निकालने लगें, इसलिए पहले स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि पढ़ाई के नाम पर मुझे मिडिल का भी सर्टिफिकेट प्राप्त नहीं। न मैंने पूरी तरह गांधी को पढ़ा है और न मार्क्स को | पूंजी एकत्र करने की तमन्‍ना आपकी तरह मेरे मन में भी अवश्य रही है, लेकिन न मेरे पास साहित्य की पूंजी है और न पूंजीवाद का तत्त्वज्ञान ही है। पंडितजी के घर में पैदा हुआ हूं, पर संस्कृत का पंडित, नहीं | मुस्लिम जनसंपर्क साधा है, लेकिन उर्दू अदब में मेरी पैठ नहीं । बाबू श्यामसुंदर दास, बी. ए., बाबू गुलावराय, एम. ए. और अंग्रेजी पढ़ाते-पढ़ाते हिंदी के डॉक्टर बने नगेन्द्र के साथ मेरी अच्छी-खासी बनी है | पत्रकारिता के पच्चीसों प्रकाश स्तंभों जैसे नेशनल हेरल्ड के चलपति राव, हिंदुस्तान टाइम्स के दुर्गादास, इंडियन एक्सप्रेस के मुलगांवकर, (भ




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