गीता में इश्वरवाद | Giitaa Men Iishvaravaad

Book Image : गीता में इश्वरवाद  - Giitaa Men Iishvaravaad

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about ज्वालादत्त शर्मा - Jwaladutt Sharma

Add Infomation AboutJwaladutt Sharma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
छः गीता में इश्वरवाद । पुनजन्म दुःखाल्लयभशाशवतम्‌ । ८ । १९ । श्रनिश्यमसुल लाकमिम प्राप्य । 8 । ३३ । मृत्युससारसागरात्‌ 11२1 ७ | सत्युसंसारवत्मेनि | & । ३। जन्मसत्युजराव्याधिदुःखदोषानुद्शनस्‌ । १३ । ८ । गीता में भी दुःखनाश का उपाय बताया गया है। किन्तु उस डपाय के साथ दशेनों में बताये उपायों का मिलान करने से एक बहुत बड़ा भेद हमको दिखाई देता है। वह भेद गीता के इश्वर-बाद से सम्बन्ध रखता है। गीता में दुःख-नाश करने के लिए जिन ,जिन उपायों को बताया है---उन सब उपायों का केन्द्र-स्थान इश्वर है। दशेन হাজী में बतायं उपायों के साथ गीता के उपायों का एक यही मम्मान्तिक भेद रै । दशन शास्रं की श्रालोचना करने से मालूम होता है कि अकेले वेदान्त दशन को छोड़ कर--और सब दशेनों में बताई दुःख- नाश की प्रणाली के साथ ईश्वर का कुछ ऐसा बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध नहीं है। सांख्य और पूर्व मीमांसा में तो ईश्वर से कुछ वास्ता ही नहीं रक्खा है। न्याय और वैशेषिक में इंश्वर को प्रतिपादित बेशक किया है परन्तु उन दशनों के बताये उपायों के साथ ईश्वर का कुछ सम्बन्ध नहीं है। पातखल में योग-प्रणाली के साथ इधर को संयुक्त जरूर किया है । किन्तु उस दशैन में ईर का स्थान श्रति गीण दै । वेदान्तद्शौन के प्रतिपाद्य भी ईश्वर हे, ता भी वेदान्त और गीता की प्रणाली में जे मेद है वह कुछ थोड़ा नहीं । इन सब बातों की आलोचना यथा-स्थान विस्तारपूवंक की जायगी ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now