कबीर और जायसी का रहस्यवाद तुलनात्मक विवेचन | Kabir Aurjayasi Ka Rhashyavaad Tulnatmak Vivechana

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : कबीर और जायसी का रहस्यवाद तुलनात्मक विवेचन  - Kabir Aurjayasi Ka Rhashyavaad Tulnatmak Vivechana

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about गोविन्द त्रिगुणायत - Govind Trigunayat

Add Infomation AboutGovind Trigunayat

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( ६ ) उपनिषदों मे रहस्यमय की भ्रनुभूति तक पहुँचाने वाले बहुत-से मार्ग निर्देशित किये गए है। छान्दोग्योपनिषद्‌ मे धर्मं के तीन पक्ष बतलाए गए है--यज्ञ, अंध्ययल और दान | धर्मस्य श्रयः स्कन्धाः यज्ञोऽध्ययनं दानम्‌ } भक्ति और तपस्या को हम यज्ञ रूप मान॑ सकते हैँ । दान को कमं एव योग का प्रतीक लिया जा सकता है। श्रध्ययन से ज्ञान का अभिप्राय हैं। उपनिषदों में इन तीनों सा्थनों का उल्लेख और भी कई स्थलों पर मिलता है। “बुहदारण्यकोपनिषद्‌” की निम्न लिखित पंकित में भी उपयु क्त॑ तीन साधनों का स्षकेत-सा मालूम पड़ता है-- भ्रात्मा वा भरे दृष्टव्यः श्रोतव्यो मन्तव्यो निदिध्यासितव्यः । भर्थात्‌ भ्रात्मा साक्षात्कार करने योग्य, श्रवण करने योग्य; मनन करने योग्य और ध्यान करने योग्य है । ज्ञान-काड का प्रतिपादन करते हुए भी उपनिषद्‌ भक्ति-मार्ग की उपेक्षा नही कर सके है । “इवेताह्वतर उपनिषद्‌ मे स्पष्ट लिखा है कि जब तक उस रहस्यमय में साधक की भक्तित नहीं होती तब तक वह उसका साक्षात्कार नही कर सकता- यस्य देवे परा भक्ति यथा देवे तथा गुरो तस्यते कथिताहषर्थाः प्रकारान्ते महात्मनः ॥१ भ्र्थात्‌ जिसकी परमात्मा मं उत्तम भक्ति है भौर परमात्मा के समान ही गुरं मे भक्ति है वही सबकुछ जान लेता है । उपनिषदों में योग का भी विस्तार सेः उल्लेख किया गया है । “कठोपनिषद्‌' में स्पष्ट लिखा है कि उस रहस्यमय देव को श्राध्यात्म योग से जानकर साधक हषं व रोक से रहित हो जता है- “श्राष्यास्मयोगाधि गमेन देदमत्वा धीरो हर्ष शोको जहाति ।“२ १. ६।२६।३। २. १1२१२ ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now