पचास कहानियां | Pachas Kahaniyan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
327
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)त हृदय की कसक
व॒ती सममूँ गी। अगर मेरा सोभाग्य अन्धे समाज को खलेगा,
तो देखने देना।
मने कहा- नहीं शान्ता, इस तरह . समाज की अवहैलना
करना ठीक नहीं । हमे इसी समाज मे रहना ओर मरना है ।
चार दिन की इस जिन्दगी मे समाज से अपयश लेकर जीना-
मरना अच्छा नहीं ।
उसने मेरी बातों का कोई उत्तर नहों दिया। मैंने फिर कहा--
यह तो बताओ, तुम मेरी आत्मा को प्यार करती हो या क्षण-
भद्भुर शरीर को !
आपकी आत्मा को ।
तो देखो--यह शरीर ओर रूप एक दिन मिट्टी में मिल
जायगी; किस्तु मेरी आत्मा सदा तुम्हारे साथ रहेगी। मेरा
शरीर चाहे कहीं भी रहे, लेकिन तुम्हें मे रे वियोग का दुःख नहों
उठाना पड़ेगा ।
- मेरी बात सुनकर उसके हृदय पर बड़ा आघात पहुँचा । उसने
कडा--देख ली मने आपकी फिरसपी ! अच्छा, आप जाते ही
है, तो जाये; पर अपनी इस दासी को भुखा मत दीजियेगा ।
यह कहदते-कहते उसका मुह पीला पड़ गया। बगल से उसने
एक सुगन्धित रेशमी रूमाछ निकालकर कहा--जल्ञीजिये, यह है
मेरी याददाइत !
मैंने रूमाल लेकर उसकी खुशबू से तबीयत को तर किया--
फिर उसे आँखों से छगाते हुए जेब में रख लिया। मैंने अपने
ट्रंक से दो किताबें निकार्ली और उसे देते हुए कहा--छो, ये ही
तुम्हें मरी याद दिलायेंगी । |
उसी दिन, रात को ट्रेन से, सबसे बिदा होकर, मैं घर की
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