सुन्दर कहानियां | Sundar Kahaniyan

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Sundar Kahaniyan by इन्द्रसेन शर्मा - Indrasen Sharmaलीलावती मुंशी - Lilavati Munshi

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लीलावती मुंशी - Lilavati Munshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आत्म-संयस चलाता था। प्र एक नवयुबक ब्रह्मचारी बड़ा चतुर था और वह स्वयं अपने इस गुण को जानता था। उसकी बड़ी इच्छा थी कि वहु अपनी योग्यता- ओं को अधिक सै अधिक बढ़ाये जिससे सर्वन्न उसकी प्रशंसा हो। इसके लिये उसते एक के बाद एक कई देशों की यात्रा की। एक तीर बनानेवाले के यहां उसने तीर बनाना सीखा। कुछ दूर आगे जाकर उसने नाव बनाना तथा उसे खेना सीखा। एक जगह उसने गृह-निर्माण की का सीखी। फिर एक और जगह उसने करई ओर कलाएं सीखीं 1 इस प्रकार वह सोलह देशो का पयंटन कर वापिस घर लोटा ओर बड़े गये के साथ कहने लगा, “इस पृथ्वी पर भेरे समान चतुर ओर दूसरा झनुष्य कोन है?“ एक दिन भगवान्‌ बद्ध ने उस ब्रह्मचारी को देखा और उन्होंने सोचा कि इसको उस फलय की शिञ्जा देनी चाहिये जौ उन सबसे, जो জল अव तरू सीखी ह, अधिक महान्‌ हो । दे एक बूढ़े भ्रमण का रूप धारण करके उस नवयुवक कै पास गयं । उनके हाथ सें एक सिक्षापत्र धा । “तुस कौन हो ?” ब्रह्मचारी ने प्रइन किया। “सं अपने शरीर को व्च में रख सकतेवाला एक मनुष्य हूं ।” /तुल्न क्या कहना चाहते हो ? “एक घन्‌वेंदी तीर चलाना जानता हे”, बुद्ध ने उत्तर दिया, (एक नाविक नाव खेता है; एक शिल्पी अयनी देख-रेख में मकान बनवाता १७




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