संस्कृत व्याकरण प्रथम भाग | Sanskrit Vyakaran Pratham Bhag
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.38 MB
कुल पष्ठ :
176
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
गणपति राय - Ganpati Rai
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सन्त गोकलचन्द शास्त्री - Sant Gokal chand Shastri
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)टं० सस्द्त-ब्यावणम। [द्वितीयः
विसेंग-सान्धि! ।
२९.--चविसर्जनीयस्य खः ॥ विसर्ग फे परे यद खर हो सो
चिसर्ग को सू दो आता है ॥ यथन-पूर्णःस्थन्द्रसनपूर्णसू+
चदुद्म्तपूर्णदचन्द्र: ( ६० ), भीतः +टलतिनमीतसुदरलति८
मीतथलखि ( ११ ), उच्नतः्न-तसुपनउनतस्ससः ॥
३०--या दारि ॥ दिसगे के परे यदि शर् दो तो दिसर्ग को
चिकब्प से स हो जाता द ॥ यथाल-रामत्नशेंतिन्यमसत
इेतिनयामधशेति (१०)-पमः देति, घटार+पटलघटास+पट्लघटा+
च्पट (११)-घट।। पट, प्रथमनसगान्प्रथमस्सग्प्रयम सगे हा
र--अता रोरप्लतादप्लुते; हाशि च ॥ चिसरग के पॉदुछे
यदू इस्व अ दो आर पर हस्व अ था दृदा दो तो घचिसग को
उद्दी जाता दे. ॥ यथा-उंचम्नअघवीतू>दूघ+उनप-अन्वीत््स
15ज्वीत् (२)१,शिव+वन्यन्यदावन+डनवन्यधिवोचन्यः ॥!
३९५--चविसग के पूर्व यदि अ वा आ के िना कोई स्वर हों
आर पर अब धो तो विसखभ को र् दु जाता दे ॥ यधा--हरिन
मयमनदा्र्यम्, . तैम्नउक्तमून्तेसकम्, . भाजुश्कगर्छतिल
भाजुगंच्छति ||
श०--योरि॥रके परे यदि र् दो तो पूर्व र् का ठोप ह। जाता हे
घे-ढलोपे पूर्वस्य दीघा5िणः ॥ लुदू वा र् के पूर्व डस्च
अणूको दीप हो जाता है ॥ यथा--पुनर+रक्षनपुन+रश
( ५३ )न्पुनारकष, हरिस्करकनिन्डररुकरसति ( शेर )
रक्ति ( २३ )न्दशीरक्षति ॥ थ
३'--नोभगोअघोाअपूवेश्य यो5दशि ॥ भा, आ, मो, सगो
अभी के पर यदि विस हो तो चिसगे का पविसग को यही
कर उसका) लोप हो जाता हैं यदि परे अब है, लोॉप होने
पर फिर सान्वय नहीं होता ॥ यथा--राम/नजागतम्तराम
शागतः, देव +उवाचन्देव उवाच, भावनदेवरत्तनभा देवदस
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