कोरिया की मजदुर पार्टी की केन्द्रीय समिति का पार्टी इतिहास प्रतिष्ठान | Korea Ki Majdur Party Ki Kendriya Samiti Ka Party Itihas Pratishthan

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Korea Ki Majdur Party Ki Kendriya Samiti Ka Party Itihas Pratishthan by अमरनाथ विद्यालंकार - Amarnath Vidhyalankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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से लेकर दादा, दादी, पिता, मां, चाचा और छोट भाइयों और नाना, मामा तक--देश की' स्वाधीनता के लिए और जनता की श्राजादी और मुक्ति के लिए पीढ़ी-दर-पीढ़ी पुरजोर संघर्ष करते रहे । क्रांतिकारी परिवार में जन्मे कामरेड किम इल सुंग ऐसे भीषण तूफानों और मुसीवतों के बीच पले और बड़े हुए जबकि सारे देश में राष्ट्रीय विनाश के प्रति श्राक्रोश ग्रौर पीड़ा व्याप्त थी । साथ ही साथ उनके माता-पिता उनके बचपन से ही उन्हें देश भक्ति की शिक्षा देते रहे । वे प्रथम मार्च के उस विद्रोह की देशभक्तिपूर्ण उमंग से अनुप्राणित हुए थे जो कोरियाई जनता का राष्ट्र व्यापी जापान-विरोधी प्रतिरोध संघर्ष था। अपने पिता को जापानी स!म्राज्यवादी पुलिधष द्वारा भ्रमानुषिकता के साथ बार-बार गिरफ्तार होते देख कर शत्रु का तामोनिशान मिटा देने का जंगजू संकल्प कर लिया तथा अपने पिता की अदम्य क्रांतिक/री गतिविधियों से प्रभावित हो कर बिल्कुल बचपन से ही देश भक्ति पूर्ण ज।पान- विरोधी सबल विचारों तथा क्रांतिकारी वर्ग चेतना से अनुप्राणित हो गये । बचपन से ही कामरेड किम इल सुंग उदारचेता और विशाल हृदय थे और ग्रसा- धारण प्रतिभा के अलावा वे स्वभाव से ही परिश्रमी प्रौर उत्साही' थे । कामरेड किम इल सूंग हमेशा अपने हाथों में किताव लिये रहते। वे प्राइमरी स्कूल के दिनों से ही हमारे देश के प्रसिद्ध देशभक्त सेनापतियों और संसार के प्रसिद्ध व्य- वितयों की जीवनियां पढ़ा करते और नियमित रूप से समाचार पत्र पढ़ा करते थे । इस प्रकार उन्हें न सिर्फ अ्रध्ययत के हर विषय में सबसे अधिक अंक प्राप्त होते बल्कि उन्होंने खास तौर से समाज के बारे में विशाल ज्ञान भण्डार भी अ्रजित कर लिया था जिसका श्रेय उनके पिता से प्राप्त शिक्षा को है। जब कामरेड किम इल सुंग १४ वर्ष के थे तभी से उनके मन मे जापानी-सास्राज्य- वादियों के विरुद्ध लड़ने और हर कीमत पर देश को आजाद कराते की' प्रचंड झ्राकांक्षा घर कर चुकी थी और वे उसी' उम्र में उत्तर-पूर्व चीन चले गये जहां उनके पिता क्रांतिकारी संघर्ष में लगे हुए थे। उन दिनों की याद करते हुए कामरेड किम इल सुंग ने कहा : “१४ बर्ष की आयु में मेने दढ़ निश्चय के साथ आमलोक-गांग नदी पार की कि जब तक कोरिया स्वाधीन नहीं हो जाता, में वापस नहीं लोटूंगा । में उस समय बच्चा ही था और किसी के लिखे अमलोक नदी के गीत' को गुनगुनाते हुए यह सोच कर किं वह्‌ दिन कब आयेगा, जब में इस धरती पर जहां में बड़ा हुआ और जहां की कढ्नों में हमारे पुरखे




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