ब्रज - विनोद | Braj Vinod
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
147
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
चम्पाराम मिश्र - Champaram Mishr
No Information available about चम्पाराम मिश्र - Champaram Mishr
भवानीदास - Bhavanidas
No Information available about भवानीदास - Bhavanidas
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(বার
¢ व्रज-वेनोद् ।
जोंग समाधि दान भव ती रथ बिनहिं अखिल अघ के मल धोऊ।
दासभवानी पेखि सुद्धविं यह नेह समेत गेह उर गोड ॥१०॥
राधे कहा कहो किन प्यारी।
मन मोहन के रूप समान््यों आपुद्दधि मानति कुंज-विह्यारी |
देहु वताय द्या करि वेगर्दिं बिरह विकल अति मोहि निहारी ।
রি ১ (कि ডি
हा हा करत निहोरत पुनि पुनि मानि लेहु मनुहारि हमारी |
৮৮৫ কি
৩/৫৮ € भ < ৯২ 4 ৮১০৯
बिहसि सखी धाई मोहन पह चलि देखहु किन कोतिक भारी |
राधे राधे ही को दूँढाति आपु নই मन सों बनवारी |
स्यामा्दिं लाइ ठादू आगे करे कद्दती यह वृषभानु-दुल्लारी ।
श्र
दासभवानी लाखे सकुचानी कहा भयो मोहि कहत सम्हारी॥ ११॥
द्धि बेचन आदे एक नागरि ।
स्यामिं लेड कोडमुख भाषत सीस मोहि लीने दाधि गागरि।
कोड एक देखि दही हँस पूंडुति श्याम मोल कहु मति की आगरि।
दासभवानी समुझ लजानी श्याम बिबस में कहत उज्ागरि १२
चलहु सखी खेलिये लाल पलंग फागुरी ।
सकल सुखमा सदन निपुन अतिरस कला
जासु छवि लखत मन बढत अनुरागरी |
अविर मुख मीढि दम आंजि रंग लीन
User Reviews
No Reviews | Add Yours...