ब्रज - विनोद | Braj Vinod

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Braj Vinod by चम्पाराम मिश्र - Champaram Mishrभवानीदास - Bhavanidas

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चम्पाराम मिश्र - Champaram Mishr

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भवानीदास - Bhavanidas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(বার ¢ व्रज-वेनोद्‌ । जोंग समाधि दान भव ती रथ बिनहिं अखिल अघ के मल धोऊ। दासभवानी पेखि सुद्धविं यह नेह समेत गेह उर गोड ॥१०॥ राधे कहा कहो किन प्यारी। मन मोहन के रूप समान्‍्यों आपुद्दधि मानति कुंज-विह्यारी | देहु वताय द्या करि वेगर्दिं बिरह विकल अति मोहि निहारी । রি ১ (कि ডি हा हा करत निहोरत पुनि पुनि मानि लेहु मनुहारि हमारी | ৮৮৫ কি ৩/৫৮ € भ < ৯২ 4 ৮১০৯ बिहसि सखी धाई मोहन पह चलि देखहु किन कोतिक भारी | राधे राधे ही को दूँढाति आपु নই मन सों बनवारी | स्यामा्दिं लाइ ठादू आगे करे कद्दती यह वृषभानु-दुल्लारी । श्र दासभवानी लाखे सकुचानी कहा भयो मोहि कहत सम्हारी॥ ११॥ द्धि बेचन आदे एक नागरि । स्यामिं लेड कोडमुख भाषत सीस मोहि लीने दाधि गागरि। कोड एक देखि दही हँस पूंडुति श्याम मोल कहु मति की आगरि। दासभवानी समुझ लजानी श्याम बिबस में कहत उज्ागरि १२ चलहु सखी खेलिये लाल पलंग फागुरी । सकल सुखमा सदन निपुन अतिरस कला जासु छवि लखत मन बढत अनुरागरी | अविर मुख मीढि दम आंजि रंग लीन




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