भिक्षु विचार दर्शन | Bhikshu Vichar Darshan

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Book Image : भिक्षु विचार दर्शन  - Bhikshu Vichar Darshan

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मुनि नथमल जी का जन्म राजस्थान के झुंझुनूं जिले के टमकोर ग्राम में 1920 में हुआ उन्होने 1930 में अपनी 10वर्ष की अल्प आयु में उस समय के तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य कालुराम जी के कर कमलो से जैन भागवत दिक्षा ग्रहण की,उन्होने अणुव्रत,प्रेक्षाध्यान,जिवन विज्ञान आदि विषयों पर साहित्य का सर्जन किया।तेरापंथ घर्म संघ के नवमाचार्य आचार्य तुलसी के अंतरग सहयोगी के रुप में रहे एंव 1995 में उन्होने दशमाचार्य के रुप में सेवाएं दी,वे प्राकृत,संस्कृत आदि भाषाओं के पंडित के रुप में व उच्च कोटी के दार्शनिक के रुप में ख्याति अर्जित की।उनका स्वर्गवास 9 मई 2010 को राजस्थान के सरदारशहर कस्बे में हुआ।

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका টিলা १०--जीमनवारो मेँ गोचरी जति है ।* ११--चेला-चेली बनाने के लिये आहुर हो रहे है। इन्हें सम्प्रदाय चलाने से मतलब है, साधुपन से नहीं 1* ११५--साथुओ के पास जाते हुए श्रावकों को ज्यो-त्यो रोकने का यक्ष करते हैं । उनके कुटुम्व में कलह का बीज छा देते हैं ।? १३--आण वैराग्य घट रहा है, भेख बढ़ रहा है। हाथी का भार गधों पर लदा हुआ है। वे थक गए हैं और उन्होंने वह भार नीचे डाल दिया है ।४ अआचार-शियिलता के विरुद्ध जैत-परम्परा में समय-समय पर ऋान्ति होती रही है। आर्य सुहस्ती, आाय॑ महागिरि के सावधान करने पर तत्काल सम्हुल गए ।५ चैत्यवास की परम्परा के विरुद्ध सुविहित-मार्गी साधु बरावर जूभते रहे । हरिभिद्रसूरि ने 'सबोध प्रकरण' की रचता कर चेत्यवासियों के कर्तव्यों का विरोध किया । जिनवछमसूरि ने 'सघपटूक' की रचना की और सुविहित-मार्म को आगे बढ़ाने का यक्ष किया । जिनपतिसूरि ने सघपट्रक पर ३ हजार इलोक-प्रमाण टीका लिखी, जिसमें चैत्यदास कप स्वरूप विस्तार से बताया । चैत्यवास के विरुद्ध यह अभियान सतत चालू रहा । १--आचार री चौपई * १ ६०-२१ जीमणयार में बेंहरण जाए, झासाधां री नहीं रीत जी । चरज्यो आचारांम इहतकत्प में, उत्ताथेन न्सीत জী) आस्स नदी भारा मे जातां, षरे चेठी पाति बसेषजी। सर्र आहार्‌ त्यात भर पातर त्यां लज्यां छोडीखे मेप জী || रवद, ३ १९ चेछा चेली करण रा लोमिया रे, एकत मत बांधण सू कामरे 1 विकर्ला ने मुंड-मृंड मेला फरे रे, दिराए अहस्थ ना रोकढ़ दास रे ॥ ३-पह्दी ५ ३२-३४ के षवे छथ साधां कने, तो मतीयं मै क भाम्‌ । यू षजीं বাজী ঘ रा मनुष्य, जाबा मत दो ताम ५ मि द्रण परवा दो मती, वठे खुणमा मतद बांण। নয नै च्याबो म्द कनं, ए दुनार चरित पिछांण॥ छ-चदी ६२८ वराग चथ्यो न मेष धियो, दध्यां रो मार्‌ गधा रदियो । थक गया बोर दियो राच्छो, एव भषधारी पांच दं फा ॥ ५--चुहत्कत्प चूणि, उद्देशक २, निशीय चूणि ० ८




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