मांडूक्योपनिषद | Mandukyopanishad
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
127
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)५ मान्दम्यापनिषद
ही जाता है। इस्ीलि! $ एमात्मा का ठीक नाम है। यदि सीध जीवन को देखें तो हमारी
पिन्दगी और $ विल्लकल एक ही है।
यदि दो प्रस्तकों की लम्बाई चौड़ाई एक बगवर हो अर्थात एक ही आकार की हों
भीर उन्हें एक्र दुसरे के उपर रख दिया जाब तो दोनों अलग-ग्रल्नग दिखाई नहीं दंगी। इसी
कार यदि दो समवाह (जिसकी तीनों भज़ाएँ बगबर होती है) प्रभुम कोए द्यः के उप
रख दिया जाये तो भी द्वोनों अल्लग-अलग दिखाई नहीं देंगे। वे दोनों एक ही त्रिभन्न दिखेंगे।
ठीक उची प्रक यदि परमात्मा के # नाम को श्त्मा के साथ मिल्रा दिया जाये तो थे दोनों
अलग-अलग नहीं जगेंगे। # नाम ऐसा लगेगा कि यह मे ही नाम है। # नाम एवं हमाग
खग्प विलकल एक दिखेगा। इसलिए # नाम परमात्मा का सबसे उपयुक्त नाम है। यह
লক্ষ ব্য से पुग দল खाता है। दुनिया में इससे अधिक उपयुक्त कोट दूर नाप नहीं है।
एल्तु यहाँ प्रान उठ सकता है कि फिर प्रस्मात्मा को 'कझणा सागर, জান
ख्य, ` शक्तिमान इत्यादि विविध नामों से क्यों एकास्ते हैं? क्या सन््तों का यह कथन
कि भगवान के अनंत नाम हैं? - गल्नत है? नहीं। भगवान के एक-एक गुण के आधार ए
रनक नाम सख दिये गये। जिनको जिस-जिस गुण की आवश्यकता धी उन्होंने उत्ती आधार पर
नाम रख ठिय्रे! इसलिये परमात्मा का कोई भी नाम गल्लत नहीं हैं।
उव सप्वन्ध् व्रहूत नजदीकी का एवं प्रगाह होता है तो हम नाम भी नहीं लेते।
इसीलिए भक्तों ने परमात्मा का नाम ने लेकर किसी ने उन्हें अपनी माता, किसी ने अपना
पिता, किसी ने भाई आदि कह दिया। उन्होंने उनका नाम लेक प्रकार्ना उचित नहीं समझा।
अत फर्मात्मा एक है। उन्हें किसी एक नाम से या बिना नाम के अपने शिते से भी पकार
सकते हैं।
इसी सांस्कृतिक पृष्ठभतृमि को ध्यान में रखते हुए व्यवहार में पत्र अपने माता पिता
करा, पत्नी उपन पति को नाम लेकर नहीं बलातीं। नाम तो दूससें के लिए होता है। अतः
पलियों का अपने प्रति का नाम लेने की क्या आवश्यकता है? अब कई तथाकथित वदिशीरी
व्यक्ति तक करेंगे कि ये बाबा लोग पगनी छद्रवादिता एवं अन्धविश्वास की ही बात करते हैं।
त्र आप चाहे जी तके क स्रत हो, परन्तु इन सभी बातों के पी ऋषियों एवं থালা লা की
जो सोच है, जो हेतु है, मेने वही बताया है। असल में आप इन खझार्थी राजनेताओं से
प्रभावित होते हो। संतों एवं उप्रनिषददों की वाणी का अनयर्ण नहीं करते। अन्यधा नाम लेमे
की क्या आवश्यकता? नीलोखेड़ी में एक অন লনা में सचना करते समय मेरी सारी बातें
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