नेताजी सम्पूर्ण वांग्मय खंड 9 | Netaji Sampurn Vangmay Khand-9
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
273
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
शिशिर कुमार बोस - Shishir Kumar Bose
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श्रीप्रकाश भगत - Shri Prakash Bhagat
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सुगता बोस - Sugata Bose
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(वा)
साम्नाज्यवाद-विरोधी आदोलन कौ खडित करने और उसे दबाने के उद्देश्य से बनाए
गए साम्राज्यवादी सविधान को स्वीकार करने के विरोध मे टिप्पणी करते समय बोस ने कहा*
बटवाद्य करके शासन करने की नीति सच्त मे बैठी सरकार के लिए वरदान है।
तानाशाह राजकुमारों और नाटकीय ढग से निर्वाचित ब्रिटिश इडिया के प्रतिनिधियों मे बोस
ने विभाजन के सिद्धाठो के प्रति झुकाव महसूस किया। इस्तीलिए उन्होने मारत सरकार
अधिनियम, 1935 के सघीय भाग का विरोध करने का आग्रह किया | बोरा को आशका थी
कि यदि यह योजना किसी प्रकार असफल भी हो गई ता अग्रेज मारत के विभाजन का कोई
अन्य स्वैधानिक मार्ग खोज निकालेगे और इस प्रकार भारतीय लोगो के हाथो मे सता देने
की योजना को निष्फल कर देगे । दूसरी ओर उनका यह भी मानना था कि अपनी विभाजक
नीतिया के परिणामस्वरूग अग्रेज स्वत ही राजनीति के द्वैतवादीजाल मे फसते चले जा रहे
हैं - बाहे वह भारत फिलस्तीन मित्र ईराक मे हा था आयरलैड मे । इसीलिए सुभाषनद्र
बोस ने भारत के अल्पसख्यकी का प्रश्न उठाया और धार्मिक, आर्थिक तथा रजिनैतिक मुद्दों
पर आपसी समरा तथा कियो ओर जीते दरो की गीति अपनेनि की साह दी। उन्होने
तथाकथित दलित पर्ग को न्याय देने के मुद्दे पर भी चर्चा की । पिभिन्न भाषाईक्षेत्नो कौ
सास्फृतिक स्वागत्ता का बढावा देने कं साथ स्ताथ सुभाषचद्र बोस ने हिंदुस्तानी (हिंदी और
उर्दू का मिला-जुला रुष) फो रोमन लिपि मे आम भोलचाल की भाष के रूप मं स्वीकृति
प्रदान करने की बात्त कटी | उनका कहना था कि एक गजवूत कद्रीय सरकार के माध्यम से
भारत को एकीकृत करने के लिए एेसा सतुलन कायम करना आवश्यक है, जिसमं सभी
अन्परनख्यक वर्गो आर प्रातो को सुख-चैन से जीने दिया जाए ओर उटहे सास्वृतिक व
सरकारी मागलो मे पूर्ण स्वायत्तता प्रदान की जाए।
स्थतेत्रता के लिए तैयार रहने की जरूरत को महसूस करते हुए सुभाषचद्र ने
आजाद भारत के लिए अपने दो दीर्घकालीने कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार की। उनके
विचार मे प्रमुख समस्या बढती हुई आबादी थी, सबसे पहले जिसका निदान आवश्यक
है । सभवत वह भारतीय नेताओ गे सै पहले नैदा थे जिन्होंने जनसख्या-नियत्रण की नीति
बनाई । 'राष्ट्र के पुरर्निर्माण' के प्रश्न से जुडी प्रमुख समस्या यह थी कि देश से निर्धनता
को खत्म कैसे किया जाए। इसक लिए हमे भूमि व्यवरथा मे सुधार की जरूरत होगी
इसमे जर्मीदारी प्रथा समाप्त करना भी शामिल है। किसानो को ऋण क॑ बोझ से छुटकारा
दिलाना होगा और गामीणो को कम व्याज प्र ऋण उपलब्ध फराना होगा, किंतु आर्थिक
समस्याओ के निद्ए के लिए कृषि क्षेत्र मे किए गए सुधार ही पर्याप्त नही हैं। इसके लिए
राज्य द्वारा निर्देशित औद्योगिक विकास की महत्वाकाक्षौ योजना की आवश्यकता है ।
आधुनिक औद्योगीकर्ण को हम कितना भी भापसद और उसके दुष्प्रभावों की कितनी ही
आलोचना क्यो न करे हमारे लिए पूर्व-औद्योगिक काल मे लौटना सभव नहीं। इसफे लिए
हम चाहे कितनी भी कोशिश कर ते। स्वतत्र भारत मे सपूर्ण कृषि और औद्योगिक ढाचे
का उत्पादन और विनिमय के क्षेत्र मे क्रश समाजीकरण करने के उद्देश्य से हमे
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