काव्यशास्त्र के परिदृश्य | Kavyashastra Ke Paridrishya

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Kavyashastra Ke Paridrishya by सत्यदेव चौधरी - Satyadev Chaudhary

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about सत्यदेव चौधरी - Satyadev Chaudhary

Add Infomation AboutSatyadev Chaudhary

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
संस्कृत के प्रभुख काव्यशास्त्री [ १५ बामन रीतिवादी आचार्य थे। इन्होंने रीति को काव्य की आत्मा माना है । इनके मत/नुसार गुण रीति के आश्वित हैं । गुण काव्य के नित्य भय हैं, और अलंकार अनित्य श्रम । रम को इन्होंने 'कान्ति' नामक गुण से अभिहित किया है1 वामन पहले आचार्य हैं, जिन्होंने वक्रोक्ति को लक्षणा का पर्याय मानते हुए इसे अर्थालकारो में स्थान दिया है 1 काव्यालकारयूज्वृत्ति के संस्कृत, अग्रेजो और हिन्दी तीनो भाषाओं में अनुवाद अथवा भाष्य प्रकाशित हो चुके है । हिन्दी-माष्य जाचायं विश्वेश्वर ने प्रस्तुत किया है, तथा इसकी सारगभित, गम्भीर एवं विस्तृत मूभिका ड° नगेन ने लिखी है । ६. रुंद्रट रुद्रट नाम से कश्मीरी आचार मालूम पड़ते हैं। इनका जीवन-काल नवम षतो का आरम्भ माना जाता है । इनके ग्रन्थ का नाम काब्यालकार है, जिसमे १६ अध्याय ह जीर कुल ওই पथ। १६ अध्यायो मे से ८ अध्यायों में अलंकारों को स्थान मिला है, भर शेप अध्यायो मे काव्यस्वरूप, काव्यभेद, रीति, दोप, रस ओर मायक-नायिका-भेद का निरूपण है । यद्यपि रुद्रट अलंकारवादी युग के आचार्य हैं, किन्तु भरत के उपरान्त रस का व्यवस्थित ओर स्वततर निरूपण इनके ग्रन्थ में उप- लब्ध है ॥ नायक-नायिका-भेद कय विस्तृत निरपण भी इन्होंने सर्वप्रथम किया है। नायिका के प्रसिद्ध तोन भेद स्ववीया, परकीया ओर सामान्या का उल्लेख सर्वेप्रथम इसी प्रन्य में मिलता है। प्रेयान्‌ रस की सर्वेप्रथम चर्चा भी रुद्रट ने वी है, तथा अलकारो का वर्गकरण भी सबसे पहले इन्होंने प्रस्तुत किया है। इस प्रकार स्द्रट काव्यशास्त्रीप आचार्यों मे अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं । कुछ विद्वान्‌ इन्हे अलंकार- यादी मानते हैं, किन्तु अलकार वी अपेक्षा रम के प्रति इनका भुकाव कही अधिक है। वस्तुतः, रद्रट उधर घ्वनि-पूर्व वर्ती ओर इधर घ्वनि-परवर्ती आचार्यों के बीच एक अनिवार्य कडी हैं। इस ग्रन्थ की दो हिन्दी-व्यास्याएं उपलब्ध हैं | व्यास्याकार हैं-- (१) इस ग्रन्थ के लेखक, तया (२) आचार्य रामदेव मिश्र । ७. आनन्दवद्ध न जानन्दवद्धन कश्मीर के राजा अवन्तिवर्मा के सभापण्डित थे। इनका जौवन-काल नवम शतो का मध्य माग है । इनको स्याति श्वन्यालोक नामक अमर प्रन्‍्थ के कारण है। ग्रन्य के दो प्रमुख भाग हैं--कारिका और वृत्ति । य्याप इस विषय में विद्वानों का मतभेद है कि इन दोनो भाणे का कर्त्ता एक व्यक्ति है या दो हैं, पर अधिकतर विद्दान्‌ आनन्दवर्डान को हो दोनो भागों का कर्ता मानते हैं । इस ग्रथ में चार उद्योत हैं, और ११७ कारिकाएं । प्रथम उद्योत में तोन प्रकार के घ्वनिविरोधियों--अभाववादी, भक्तिवादी ओर बलक्षणीयतादादी--का खण्दन




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now