वेद - समालोचना | Ved - Samalochana

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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टूर. और पढ़ाया जा सकता है । जिस प्रकार संस्कृत भाषीन्क उत्तम ज्ञान से उस भाषा के श्रन्य झनघीत शाख्रो का भी ज्ञान होजाता है उस ही प्रकार वेदों का भी । देखने में श्राता है कि जो एक भाषा का उद्धट विद्वान है व उस भाषा के झन्य झनधीत शास्त्री का भी ज्ञान कर लेता है । झतः चेदो को बिना पढ़े पढ़ा या पढ़ाया नहीं जा सकता यह मिथ्या है। हां यह बात झवश्य है कि उसको उस भापा का उचे दुरज का ज्ञान द्ोना चाहिये । पतद्थे दी इमने विड्ान्‌ के साथ उद्धट विशे- बण लगा दिया है । इसके सम्बन्ध में चौथी बात यद्द कट्दी थी कि वेद झनादिं हैं क्योकि न तो उनके कर्ता का स्मरण होता है और न इनकी सन्तान ही टूटी है । यहां करता का झस्मरण वादि की दृष्टि से है या प्रतिबादि की झथवा उभय की से ? यदि बादि की दृष्टि से करता का ध्स्मरण इष्ट है लो कर्ताकि न मिलने से या उसके झमावसे । यदि कर्ताके न मिलने से हे तब तो अन्य शास्त्रों में भी कत्तां का झस्मरण दोजावेंगा | क्योंकि उनके कर्ता का भी पता नददीं चला जैसे पिटफचय के कर्ता का । चादि ने चद्दां ऐसा माना नहीं है। अतः यदि वहां कर्ता का झर्मरण नहीं हो सकता तो यहां पर भी इस ही के आधार पर कर्ता का झस्मरण नहीं माना जा सकता । यदि करता के झभाव से कर्ता का झस्मरण इष्ट है तब भी ठीक नही । क्योकि यह बात तो झभी तक साध्य कोटि में पड़ी है कि बेदी का कर्ता नहीं । यदि ऐसा मत है कि वेदों में कर्ता को स्मरण




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