न्यायदीपिका | Nyayadipika

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Nyayadipika by दरबारीलाल कोठिया - Darbarilal Kothiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राकृषकृथन ४ ~ न+ व्याकरणके अनुसार दशन शब्द “हृश्यते“निर्णीयते वस्तुत्यमने-- नेति दशेनम्‌” श्रथवा 'हृश्यते निर्णीयत इदं वस्तुतत्वमिति दशेनम्‌! इन दोनों ब्युत्पततियोके श्राधारपर दशू- धातुसे निष्पन्न होता हे । पहली ` व्युत्पत्तिके आधारपर दशन शब्द तक-वितक, मन्थन या परीक्षास्वरूप उस विचारधाराका नाम है जो तत्त्वोंके निर्शयमें प्रयोजक हुआ करती है। दूसरी व्युत्पत्तेके आधारपर दर्शन शब्दका अर्थ उल्लिखित विचारधाराके . द्वारा निर्णीत तत्वोंकी स्वीकारता होता है। इस प्रकार दर्शन शब्द दाशनिक जगत्‌में इन दोनों प्रकारके श्रथोंमें व्यवद्वत हुआ है श्र्थांत्‌ भिन्न-भिन्न मतोंकी जो तत्त्वसम्बन्धी मान्यतायें हें उनको और जिन तार्किक . मुददोके श्राधारपर उन मान्यताश्रोंका समर्थन होता हे उन ताककिक मुद्दोको दशं नशाख्रके श्रन्तर्गत स्वीकार किया गया है। सबसे पिले दशनोको दो भायोमे विभक्त किया जा सकता है-- भारतीय दशन और श्रमारतीय { पाश्ात्य ) दशेन। जिनका प्रादुभांव भारतबषमें हुआ है वे मारतीय और जिनका प्रादुमाव भारतवषके बाहर पश्चात्य देशॉमें हुआ है वे अ्रमारतीय ( पाश्चात्य ) दशन माने गये हैं। भारतीय दश्शन भी दो भागोंमें विभक्त हो जाते हैं--वेदिक হ্হান और अबेदिक दर्शन। वेदिक परम्पराके अ्रन्दर जिनका प्रादुभाव हुआ है तथा जो केदपरम्पराके पापक दर्शन हैं वे वेदिक दर्शन माने जाते हैं और बैंदिक परम्परासे भिन्न जिनकी स्वतन्त्र परम्परा है तथा जो बेदिक परम्पराके विरोधी दर्शन हैं उनका समावेश अ्रवेदिक दर्शनोंमें होता है | इस सामान्य निवमरक श्राघारपर वेदिक दर्शनोंमें मुख्यतः सांख्य, वेदान्त, . मीमांसा, योग, न्याय तथा वेशेषिक दर्शन आते हैं और जेन, . बौद्ध तथा जार्बाक दर्शन, अगेदिक दर्शन ढहरते .हैं ।




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