तीर्थकर वर्द्धमान भाग - 1 | Tirthakar Vardhaman Bhag - 1

Tirthakar Vardhaman Bhag - 1  by श्रीचन्द रामपुरिया - Shrichand Rampuriya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका बंधुवर श्रोचन्दजी रामपुरियाने जब प्रस्तुत पुस्तकको भूमिका लिख देनेका आग्रह किया तो अत्यधिक व्यस्त होने और प्रपनी मर्या- दाओंको जानते हुए भी में सहसा इन्कार न कर सका। इसका मृख्य कारण था प्रपने भारको हल्का करनेकी भावना । आजसे कुछ महोने पूर्व जब में श्री रामपुरियाजीसे मिला था तो उन्होंने इस पुस्तककी चर्चा करते हुए सहज भावसे पुछ लिया था कि भूमिका किससे लिख- वाना टीक होगा । मने उन्हें न केवल नामही सुया, अपितु भूमिका लिखवा देनेका भ्राश्वासन भी दे दिया । मेरे इस आदवासन पर रामपुरियाजी कई महीने तक छपो पुस्तक को केवल भूमिकाके ' लिए रोके रहे । लेकिन वचन देकर भौर चाहते हुए भी जब वह सज्जन अत्यधिक व्यस्तताके कारण भूमिका न भेज सके और कई महीने निकल गये तो मेरे हृदय पर बोझ्चकी एक चट्टान-सी खड़ी हो गई। उसी बोक्षको हल्का करनेके लिए, भूमिकाके रूपमें इन पंक्तियोंके लिखतेकी मांग होने पर, मेरे लिए बचनेका कोई भ्रवसर न रहा। मुझे खेद है कि रामपुरियाजीको पुस्तक प्रकाशित करने भोर पाठकोंको उसे पानेके लिए इतनी प्रतीक्षा करनी पड़ी । भारत एक विशाल भू-खण्ड हें। लगभग पेंतीस करोड छोग यहां बसते हें। उनकी अनेक जातियां हें, धर्म हें प्रौर अठग-अलग বিবার है। प्राचोतकालसे ही यह परम्परा चलो प्रा रही है। जिस प्रमद




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