भारत - ईरान सम्बन्ध 1980 - 1995 तक | Bhaarat Iran Sambandh 1980 -1995 Tak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मारत ओर ईरान एतिहासिक दृष्टिकोण ৫2) ईरानी सेना हमेशा बचाव की नीति ही अपनायी। ईरानी सेनानायक अपेक्षाकृत अधिक महत्वाकाक्षी व साहसी थे। साथ ही उन्हे मुगलो की भाँति रसद की कमी का भी सामना नहीं करना पडा। भारत और ईरान कं कन्धार मुकाबले दोनो देशो का पारस्परिक सामरिक परिचय कराया। औरगजेब भी कन्धार विजय का स्वण अपने शासनकाल मे देखता था पर अन्य समस्याओं मे व्यस्तता कं कारण उसका स्वण साकार न हो सका। इसका यह स्वण भारत ओर फारस कं बीच मधुर सम्बन्धो कं रास्ते मे एक रोड ही बना रहा। मुगलकालीन शासन व्यवस्था पर ईरानी प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है । 1 जैसा किं विदित है मुगलो का मूल प्रदेश मध्य एशिया था मुगल राजव्यवस्था का आधार फारस ओर अख कीं राज सस्थाए थी। सेना की विशेष व्यवस्था थी। सभी कर्मचारियो को सेना मे भर्ती होना पडता था उसी के अनुसार मनसब के अनुक्रम मे उनका वेतन विनिश्चित किया जाता था। सास्कृतिक एवं साहित्यिक आदान-प्रदान भी मुगलकालीन भारत और ईरान मे हुआ। ट मुगल साम्राज्य का सस्थापक बाबर स्वय तुर्की एव फारसी का बडा विद्वान था। हुमायूँ तथा उसकी बहन गुलबदन बेगम भी फारसी की विद्वान थी। हुमायूँ ने जिसे अन्य तैमूरियो के समान कला मे अभिरूचि थी, फारस मे अपने निर्वासन्‌ के समय चीनी-फारसी सगीत, काव्य ओर चित्रकला का अध्ययन करने मे बिताया तथा शाह तहमास्प के उदार सरक्षण मे रहने वाल फारस के प्रमुख कलाकारो के सम्पर्क में आया। बाद मे इन्हीं कलाकारों को काबुल लाया गया । हुमायें और उसका पुत्र अकबर इनसे चित्रकला सीखते थे तथा उन्हे “दस्ताने अमीर हमजा”' के लिए चित्र बनवाने का कार्य सौंपा गया । ये विदेशी कलाकार अपने भारतीय सहायको के साथ मुगल चित्रकला प्रणाली के केन्द्रीय भाग बन गये, जो अकबर के समय में अत्यन्त विख्यात हुई । > अकबर के शासनकाल मे फारसी तथा तुर्की साहित्य की सर्वाधिक उन्‍नति हुई। अकबर की माँ जाम के एक फारसवासी शेख परिवार मे उत्पन्न हुई थी, जिससे उसने विरासत मे ही फारसी विचार पाये और वह उससे चिपका रहा। ५ अबुल फजल की आइने-अकबरी ' निजामुद्दीग अहमद की तबकात-ए-अकबरी तथा फेज सरहिन्दी का अकबरनामा इसी काल की कृतिया है। ये फारसी साहित्य से समय-समय पर व आवश्यकतानुसार उर्जा अर्जित व 1, ए के मित्तल, पृ पृ -405-6, पा्वोदृत 2 वही प.प -413-15 3 मजूमदार राय चौधरी दत्त- भारत का वृहद्‌ इतिहास भाग-2, पं -308 दिल्ली । 4 वहीं पृ.-298




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