जलते दीप महकते फूल | Jalate Deep Mahakate Phool

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वृद्ध लिया--/कह से माई है, मैया? शिवनगर से 1” “अच्दा सुस्राल से आई है । लिखी किसने है?” भोविस्द ने चिट्‌टी को पलटकर नीदे सलाम पढ़ा, फिर कहां--- “बजनाथ ने 1” “ओह तो साले साहब ने लिखी है । हाँ तो क्या लिखा है? “लिखा है--शिवनगर से बैजवाथ राखताय बाग राम राम छस्जूटामजी को मासूम होवे । आगे समाचार यह है कि हम सब यहाँ सगवान वी कृपा से दुशलपूबंक हैं और आएकी कुशलता श्रीमणवान से सदा नेक चाहते हैं । और सब्र तो ठीक है लेक्नि बड़े दुख के साय लिखना पड़ रहा है कि छोटी वच्ची मालती को तबियत टीक नहीं है । हमने उसका इलाज करनि शो पूरी शूरौ कोशिश की, संगर कुछ फायदा नहीं हो रहा हैे। दूसरी बात दुख के साथ लिखनी पड़ रही हे कि किशोर, दीपक ओर राघाकान्त इतना उधम करते हैं कि মহী ঘসী মী नाक में दम है। सारे दिन पड पर चढकर बाते जाते लोगों को पत्थर भारते रहते हैं । लश्कियाँ मी बम शरारती नही हैं। हर वत्रत रसोई में चुसी रहतो हैं और जो हाथ आता है, उस्ते मुंह तक पहुँचा देती हैं । हमारे दोनों बच्चो वी भी विदाई दु होनी ४ । पिताजी भौर माताजी का बहता है कि आप अब जह़दी ही अपने बाल बच्चो को यहाँ से ले जाने का प्रवन्प फरें । हम और ज्यादा दिन आपके बच्चो की शरारत और नटणटपन सहन सही कर सबते । किशोर तो पिताजी दी मूरछ दक्ड कर खोचते लगठा है (” यह पदकर गोविन्द दो हँसी आ गई। छज्जूराम भी फिरी सो हँसी हँस कर बोला--'बौर जया लिखा है?” পলি है--हमारे बच्चों गो सभी किताओं ब!द्रियां देन ऐन्सिलों को मेल खिलौने समभदूर तोड़ मोड़ दिया गया है । आस पड़ौस के घोग भी बहुत तग है । आपके बच्चे सभी छोटे ढह्ों से तू तड़ाक से दाद करते हैं 1 धितम आप पर नाराज हो रहे हैं ओर कहते हैं कि न तो बच्चों को पदया लिया और न उन्हे बुछ बोलना हिखाया। बहिन ही तबियत भी कुछ राराद ही है!




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