समग्र | Samgra

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Samgra  by आचार्य श्री विधासागर - Aachary Shri Vidhasagar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about आचार्य श्री विद्यासागर - Aachary Shri Vidyasagar

Add Infomation AboutAachary Shri Vidyasagar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
समग्र/४/११ सुशीलता ए निरततिचार शब्द बड़े भार्के का शब्द है! व्रत के पालने में यदि कोई गड़बड़ न हो तो आत्मा और मन पर एक ऐसी छाप पड़ती है खुद का নী পিজা होता ही है, अन्य थी जो इस त्रत ओर व्रती के सम्पर्क भँ आ नाते है वे भी तिर जाते हैं। भील से अभिप्राव स्वभाव से है। स्वभाव की उपलब्धि के लिए निरतिचार व्रत का पालन करना ही “शीलब्रतेष्वनतिचार'” कहलाता है। व्रत से अभिप्राय नियम, कानून अथवा अनुशासन से है| जिस जीवन मे अनुशासन का अभाव है वह जीवन निर्बल है। निरतिचार व्रत पालन से एक अद्भुत बल की प्राप्ति जीवन मे होती है। निरतिचार का मतलब ही यह है कि जीवन अस्त-व्यस्त न हयो, शान्त ओर सबल हे। रावण के विषय मे यह विख्यात है कि वह दुराचारी था किन्तु वह अपने जीवन भे एक प्रतिज्ञा मे आबद्ध भी था। उसका व्रत था किं वह किसी नारी पर बलात्कार नहीं करेगा, उसकी इच्छा कं विरुद्ध उसे नही भोगेगा जौर यही कारण था कि वह सीता को हरण तो कर लाया किन्तु उनको शील भग न्ह कर पाया! इसका कारण केवत उसका व्रत था, उसकी प्रतिज्ञा थी। यद्यपि यह सही है कि यदि वह सीताजी के साथ बलात्कार का प्रयास भी करता तो भस्मसात हो जाता किन्तु उसी प्रतिज्ञा ने उसे ऐसा करने से रोक लिया। ये 'निरतिचार” शब्द बडे मार्के का शब्द है। व्रत के पालन मे यदि कोई गड़बड़ न हो तो आला और मन पर एक ऐसी गहरी छाप पडती है कि द का तो निस्तार होता ही है, अन्य भी जो इस व्रत ओर व्रती के सम्पर्क में आ जाते है बिना प्रभावित हुये रह नहीं सकते। जैसे कस्तूरी को अपनी सुगन्ध के तिए किसी तरह की प्रतिज्ञा नहीं करनी पड़ती, उसकी सुगन्ध तो स्वत्त चारो ओर व्याप्त हो जाती है। वैसी ही इस व्रत की महिमा है। 'अतिचार' और 'अनाचार' मे भी बड़ा अन्तर है। 'अतिचार' दोष है जो लगाया नहीं जाता, प्रमादवश लग जाता है। किन्तु अनाचार तो सम्पूर्ण त्रत को विनष्ट करने




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now