समग्र खंड तीन | Samagra Khand 3

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Samagra Khand 3 by आचार्य श्री विधासागर - Aachary Shri Vidhasagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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समग्र 3 /41 अनिमेष अवलोकन करता हुआ अपने को पाया घिरा हुआ स्वतत्रता के दिव्य तेजोमय । दाभा मण्डल मे विदित हुआ है कि शुद्ध किन्तु सहज किया का यह सूरत्रपात है यथाजात है यही सचमुच रहा सब कुछ मात तात है तभी एक साथ हो भू सात्‌ तीनो करण मन वचन तन सानन्द सादर किया प्रणिपात है फलस्वरूप विशाल भाल पर चरणरज कुन्दन कुकुम अकित हुआ है लग रहा है तृतीय नेत्र उग रहा है




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