आत्म - कथा गांधी जी | Aatm - Katha gandhi Ji
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
532
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
हरिभाऊ उपाध्याय का जन्म मध्य प्रदेश के उज्जैन के भवरासा में सन १८९२ ई० में हुआ।
विश्वविद्यालयीन शिक्षा अन्यतम न होते हुए भी साहित्यसर्जना की प्रतिभा जन्मजात थी और इनके सार्वजनिक जीवन का आरंभ "औदुंबर" मासिक पत्र के प्रकाशन के माध्यम से साहित्यसेवा द्वारा ही हुआ। सन् १९११ में पढ़ाई के साथ इन्होंने इस पत्र का संपादन भी किया। सन् १९१५ में वे पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी के संपर्क में आए और "सरस्वती' में काम किया। इसके बाद श्री गणेशशंकर विद्यार्थी के "प्रताप", "हिंदी नवजीवन", "प्रभा", आदि के संपादन में योगदान किया। सन् १९२२ में स्वयं "मालव मयूर" नामक पत्र प्रकाशित करने की योजना बनाई किंतु पत्र अध
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)किया-कराया स्वाहा ¶
` बभर युद्ध के बाद संबाल करीव करीव डलं दौ गेया थां #
वहां ने खनि:पीने ভি নাস ইহ गया था, न'पहुंनने-ओदूने '
के लिए कपड़े दो । बाज़ार खाली और . दुंकानें बंद मिलती था ।
उनको से भरता और खुली करना था, भौर वंह कामतो धीरे
ही धोरे हो'सकता था और ज्यों-ब्यों माल आता जाता तो ही (यों'
थे लोग जो धरवार छोड़ कर भग गये थे. उन्हें आने- दिया जा
सक्रता-था इसे कोरण' प्रत्येक. ट्रांसेवाल-वासी”'फो' पखवानां
लेना पढ़ता था। अब भोरे लोगों'तो परंबाना मांगते ही तरन्त
मिल जातो; परन्तु हिन्दुस्तानियो को बड़ी मुंसीबर्त कां साता
करना पड़ता था। “ ˆ 17
“लड़ाई के दिंनो'में हिंदुस्तान और लड्ढा से बहुतेरे अफसर
ओर सिपाही दक्षिण आफ्रीका में आगये' थे। उनम से जो लोग
चद वचनां चाहते ये' नेक लिए सुिधो कए ইলা म्रिटिंश'अधि-
कांरियों का कर्तव्य माना) गंया था {इधर एक नधीन ` श्चधिकासीः
मंडल कौ श्वना छन्द करनी थी खो ये शतुमवी कर्मवारी सदन `
ही उसके कॉम आगये । इन कर्मचारियों कौ तीव्र बुद्धि 'ने एंक'
नये महकंमे की सृष्टि करंडांली और इस काम में थे अधिक पहुं
तो थे हीः। हृत्शियों के लिए ऐसा एक अलग महकमा पहले हीः:
से था”, वो फिर इन लोगो ने रकल भिदा कि एशिया-वासियों
केलिः मी, ्नलग महता स्यो न कर लिया जाय सत्र उनकी
৮,
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