षोडशकारण भावना | Shodashakaranbhaavana
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
142
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सदासुखदासजी काशलीवाल - Sadasukhdasji Kaashlival
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ९)
पपके उदयतें चूकि जाय चादूदेवि रेन विव-जे यो
दोप तर होभी तो अन्य धर्मात्मा अर मिनधर्म ,की बढ़ी
निन्दा दौनी, या जानि दोप श्रच्छादन फ, भर अ्रपना
गुण दयोय कफर प्रशंसा का इच्छुक नादी होय हं सो यो
उपगूहनगुण सम्पक्लको ह । इन गुणनितें पवित्र उज्ज
दर्शन विशुद्वितानाम भावना होय है । « 7
बहुरि जो घर्ममद्वित पृहयका परिणाम कंदाचित् रोम
कतौ वेदना कहि परे वत्ति जाय तया दादि, करि. चति
जाय तथा उपसग परिपदनिकरि चलि जाय तथा भसद-
यक्षकरि तथा श्रद्मारपानक्रा निरोधकरिं परिणाम धर्म
शिथिल द्वोजाव ताझ उपदेशकरि धम में स्थम्मन करें।
भो झानी ! भो धमके घारक ! तुम सचेत होहू, केसे कायरता
धारणकरि धर्म में शियिल मये हो, जो रोगझी वबेदनातँं
धर्म चिंगो हो, कसी भूलों हो, यो असातावेदनीकर्म
अपना अवसर पाय उद्यमे श्राप मपश्च जो कायर
दोय दीनताकरे रूदनविलापादि करते मोगोगे हो कर्म
माही छांडेगा । कर्म के दया नाहीं होय है । भीर घीरपनाते
मोगोगे दो कर्म नादी चडिमा, फोड देव दानय मन्र तन्व
आओपधादिक तथा स्त्री, पुत्र, मित्र, धांघव सेवक सुमटादिक
उदये धाया कमं हरेक समर्थं है नादी, यो हुम
अच्छी .तरद समझो दो । भव इस बेदना মক্কা হান
अपना घ॒र्म अर यश अर परलोक इन. फैसे पिगाडो हो ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...